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________________ सम्यग्चरित्र : वे कारण जिनसे जीव कर्मबंधन में आता है आसव कहे गएं हैं उनका विरोध संवर है। 7 मुक्ति के लिए विरक्ति, तप, साधनादि संबर हैं, कठोर तपश्चर्या निर्जरा है, अंत में मोक्ष होता है। संसार के कारणों की निवृत्ति के प्रति समुद्यत ज्ञानवान का कर्मादाननिमित्त क्रियोपरम् सम्यक् चरित्र है। 28 महाव्रत, अणुव्रत, गुप्तियों, समितियों, शिक्षाव्रत, गुणव्रत, एवं उनके नियम इस चरित्र के अंतर्गत आते हैं। यह एक तरह से अहिंसा दर्शन का क्रियात्मक पक्ष ही है। जैन रामायण में दर्शन : निश्चय ही हेमचंद्र ने अपने पूर्ववर्ती जैन रामकथात्मक काव्यों का अध्ययन किया था इसी कारण उनके दर्शन पर रविणेश, स्वयंभू आदि का प्रभाव स्पष्ट रूप मे परिलक्षित होता है। हालांकि हे मचंद्र ने अपनी "जैन रामायण" में दार्शनिक शब्दों यथा – अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, सप्तभंगी आदि का प्रयोग नहीं किया है फिर भी तात्विक दृष्टि से जैन दार्शनिक मान्यताओं का स्पष्ट विवेचन यत्र-तत्र मिलता है। स्थान-स्थान पर हेमचंद्राचार्य ने जैन धर्मशासन का वर्णन किया है। संपूर्ण "पर्व' में जिन जैन देवालयों, जिन देवताओं एवं जैन शासनान्तर्गत किये जाने वाले धार्मिक कृत्यों का समावेश किया गया है। हेमचंद्र कहते हैं, धर्म का अभिमान सर्वोपरि है। अन्य अभिमान नश्वर एवं दुःखदाता हैं । बुरे कर्मों के नाश का केवल एक ही उपाय है- दीक्षा। दीक्षा के द्वारा समस्त दुःखों का नाश संभव हैं । " सत्य धर्म का सर्वोपरि अंग है। सत्य के द्वारा बड़ी से बड़ी विजय प्राप्त की जा सकती है। समस्त दिव्यताएं सत्य में निवास करती हैं। वर्षा सत्य के बल पर होती है। देवताओं की सिद्धि का एक मात्र कारण भी सत्य ही है। 30 जैन धर्म में 'सत्य एवं अहिंसा' दो धुरी चक्र माने गए हैं। सत्य की तरह अहिंसा भी व्यक्ति के जीवन का आवश्यक अंग होना चाहिए हिंसा से विरक्त होना ही, मुक्त होना ही अहिंसा है। भगवान महावीर तथा उनके अनुयायी धर्माचार्यों ने अहिंसा के बारे में कहा है : किं सुरगिरिणो गरूये। जलनिहिणो किं व होइज्जत गंभीर। किं गयणाऊ विशलं । को वा अहिंसा समो धम्मो।" त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (पर्व') में हेमचंद्राचार्य ने पशुवध का विरोध 32 करते हुए स्पष्ट धोषणा की है कि पशुओं, बकरे आदि का वध करने वालों का स्थान घोर नरक में होता है। 3 हेमचंद्र कहते हैं कि धर्म की राह पशु का वध करना नहीं है वरन् अहिंसा का पालन सच्चा धर्मपथ है। उन्होंने जैन धर्म को मद्यमांसादि का प्रयोग न करने वाला बताया है जो सत्य है। जैन धर्म के दो पंथ हैं – मूर्तिपूजक एवं मूति की पूजा न करने वाले । हेमचंद्र ने मूर्तिपूजा का पक्ष लिया है। जैन रामायण के अंतर्गत दशरथ, बाली, रावण आदि अनेक राजाओं को हेमचंद्र ने चैत्यों की वंदना करते हुए बताया है। 58
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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