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छ: कांडों में क्रमश : ८६, ३५०, ५९७, ४२३, ०७ एवं १७८ श्लोक हैं। इस प्रकार कुल १५४१ श्लोकों का यह ग्रंथ है ।।
इस शब्दकोष में हेमचंद्र ने स्वोपज्ञवृत्ति टीका में पूर्ववर्ती ५६ ग्रंथाकारों तथा ३१ ग्रंथो का उल्लेख किया है। प्रथम कांड में देवताओं व गणधरों के नाम तथा त्रिकोण के अर्हन्तों के नाम दिये गए हैं। द्वितीय कांड में सभी देवों का अंगों सहित वर्णन है। तृतीय कांड में मानवों तथा चतुर्थ कांड में तिर्यच्चों का वर्णन है। चतुर्थ कांड में एक इन्द्रीय, दो इन्द्रीय, त्रि इन्द्रीय, चतुः इन्द्रीय, पंचेन्द्रीय जीवों का वर्णन है। कृति के पांचवें कांड में नारकीय जीवों का वर्णन है। हेमचंद्र ने जीवों की पांच गतियां बताई हैं। ऋतुओं के संबंध में उस कोश में मनोरंजक जानकारी मिलती है। सेना के अंग, जाति-वर्णन आदि प्रकरण रोचकतापूर्ण हैं। यह कोशग्रंथ इतिहास तुलना, पर्यायशब्द, एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अगर इसे अमरकोश से भी उत्तम शब्दकोश कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी।
____ अनेकार्थ संग्रह : यह ग्रंथ अभिज्ञानचिंतामणी के बाद की रचना है। इसमें एकस्वरकांड, द्विस्वरकांड, त्रिस्वरकांड, चातुःस्वरकांड, पंचस्वरकांड, षट्स्वरकांड एवं अव्ययकांड, इस प्रकार सात कांड हैं। इन कांडों में क्रमश : १६, ९१, ७६६, ३४३, ४८, ०५ एवं ६० श्लोक हैं। इस प्रकार १८२९ श्लोक आए हुए हैं। डॉ. वि. भा. मुसलगांवकर इस लोक संख्या से सहमत नहीं है। अभिज्ञानचिंतामणि में एक ही अर्थ के विभिन्न पर्यायवाचक शब्द दिये गए है। जबकि इस कृति में एक ही शब्द के अनेक अर्थ दिये गए हैं। कोशग्रंथों के रचनाकर हेमचंद्र ने संस्कृत कोशकार के रुप में यश अर्जित किया है। हेमचंद्र के समय से लगाकर आज दिन तक ये ग्रंथ प्रमाण के रुप में कार्य कर रहे हैं।
इसीलिए तो कहा है-"हेमचन्द्रश्च रुद्रश्चामरोऽयं सनातनः"
देशीनाममाला : देशीनाममाला कुमारपाल से हेमचंद्र का परिचय होने के कदाचित् कुछ ही पूर्व लिखी गई होगी। क्योंकि हेमचंद्र उसके उपोद्धात के "तीसरे" श्लोक में संकेत करते हैं कि "मैंने केवल अपना व्याकरण ही नहीं अपितु संस्कृत कोश एवं अलंकार शास्त्र भी पूर्ण कर दिए थे। इसका समय वि. सं. १२१४-१५ माना गया है। यह प्राकृत व्याकरण का शब्दकोष है। इधर मधुसूदन मोदी ने अपनी गुजराती भाषा की कृति 'हेमसमीक्षा' में देशीनाममाला का समय वि. सं. ११९९ के बाद तथा तेरहवीं सदी के प्रारंभ में माना है।
दण्डी ने अपने काव्यादर्श में शब्दों के तीन प्रकार-तद्भव, तत्सम व देशज माने। हेमचंद्र ने मात्र देशज शब्दों के लिए अलग कोश देशीनाममाला की रचना की। इसके नामकरण पर मतभेद है। कुछ विद्वानों ने इसे
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