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आचार्य हेमचंद्र का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जीवन : भारतवर्ष के प्राचीन विद्वानों में जैन श्वेताम्बराचार्य हेमचंद्रसूरि का अत्यंत उच्च स्थान है । संस्कृत साहित्य एवं विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का है और हर्ष के दरबार में बाणभट्ट का है प्रायः वही स्थान ईसवी सन् की बारहवीं सदी के चालुक्यवंशी सुप्रसिद्ध गुर्जरनरेन्द्रशिरोमणि सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में हेमचंद्र का है ।' हेमचंद्र बहुमुखी साहित्य प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जैन धर्म के प्रचार में अपने देश में प्रमुख स्थान प्राप्त किया था ।
भारतीय साहित्याचार्यों की प्रमुख विशेषता रही है कि उन्होंने अपने जीवन का कम से कमम्परिचय अपनी कृतियों में दिया है। हेमचंद्र के जीवन तथ्यों को ज्ञात करने में भी हमें निराशा ही हाथ लगती है, फिर भी शोधकर्ताओं ने अथक परिश्रम कर उनकी जीवनी को लेखबद्ध करने का प्रयास किया है। हेमचंद्र के प्रायः सभी ग्रंथों में यत्र तत्र अनेक बातें लिखी मिलती हैं । प्रामाणिक आधार ग्रंथों के बिना हेमचंद्र की जीवन की खोज का परिणाम विश्वसनीय नहीं हो सकता है। फिर भी इनकी सहायता से उनके जीवन संबंधी रुपरेखा तो कम से कम खींची ही जा सकती है । इसमें अवश्य ही कुछ महत्व की बातें छूट सकती हैं, परंतु वे हाल के आधारों से पूरी नहीं की जा सकतीं।
हेमचंद्र महान् साधक, चिंतक व साहित्य सृजक थे। लोग उन्हें कलिकालसर्वज्ञ की संज्ञा से विभूषित करते हैं । वे महान जैनाचार्य तो थे ही,
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