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(७) राम का ससैन्य, सेतु निर्माण कर नहीं, आकाशमार्ग से लंका गमन : आज तक लगभग यह सार्वजनिक मान्यता रही है कि राम ने समुद्र पर पत्थरों का सेतु बनाकर उसके सहारे समुद्र पार कर लंका गमन किया। परंतु त्रिषष्टिशलाकापुरुपचरित इस दृष्टि से भी मानस से भिन्न खबर देता है। वह यह कि राम ने आकाशमार्ग से लंका को विजय यात्रार्थ प्रयाण किया। विद्याधरों द्वारा युद्ध के वाद्ययंत्रों को बजाने से उनका जो भयंकर नाद हुआ उससे संपूर्ण आकाश गुंजित हो गया। 27 संपूर्ण आकाशस्थल रथों, अश्वों एवं गजादि वाहनों से भर गया। 122 ससैन्य समुद्र पर प्रयाण करते हुए राम ने बलंधर नगर के राजा समुद्र एवं सेतु दोनों को युद्ध में परास्त किया, फिर वे सुवेल पर्वत पर आए। 123 इस प्रकार आकाश मार्ग से संपूर्ण सेना का लंकागमन जैन रामकथात्मक ग्रंथों की नई कल्पना है।
(८) लक्ष्मण को मेघनाद ने नहीं, स्वयं रावण ने मूर्छित किया : लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध मानस का महत्वपूर्ण प्रसंग है। इसका कारण यह है कि वीर लक्ष्मण को रावण पुत्र मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति से मूर्छित कर दिया था। 124 हेमचंद्र ने लक्ष्मण को मूर्छित करवाने का यह कार्य मेघनाद से न करवा कर स्वयं रावण से करवाया है। तदनुसार-रावण ने ज्योंही विभीषण को मारने के लिए अमोधविजया शक्ति फेंकी त्योंही राम के संकेत पर विभीषण को बचाने के लिए लक्ष्मण बीच में आ गए। 25 शक्ति लक्ष्मण के हृदय पर लगते ही वे मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। संपूण सैन्य में हाहाकार मच गया। रावण को संतोष हुआ कि लघुभ्राता की मौत को कायर राम सहन नहीं कर सकेगा एवं स्वयं मर जाएगा। यह सोच रावण लंका को चला गया। 126
(९) लक्ष्मण की मूर्छा, हनुमान द्वारा संजीवनी लाने से नहीं, विशल्या के जल स्पर्श से दूर हुई : शक्ति लगने से जब लक्ष्मण घायल एवं मूर्छित हो गए तो एक विद्याधर ने, जो संगीतपुर का राजपुत्र था, लक्ष्मण की मूर्छा दूर करने का उपाय बताया। 127 उसके अनुसार विशल्या का स्नात जल मंगवाने से लक्ष्मण ठीक होंगे। 126 तब राम की आज्ञा से भामंडल, हनुमान एवं अंगदादि वायुवेग से विमान द्वारा अयोध्या भरत के पास गए। भरत सहित वे राजा द्रोणघन से मिले व उसकी पुत्री विशल्या की याचना की, द्रोणघन ने अन्य एक हजार कन्याओं सहित विशल्या को लक्ष्मण के लिए सौप दिया। विशल्या आई एवं उसके स्पर्शमात्र से वह शक्ति लक्ष्मण के शरीर से बाहर निकल गई। निकलते ही हनुमान ने उसे उछलकर पकड़ लिया तथा उसके क्षमा मांगने पर छोड़ दिया। 129
(१०) रावण का वध राम ने नहीं लक्ष्मण ने किया : सीता को यह कहकर कि “आज राम-लक्ष्मण को मार कर तुझे बलात्कर से
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