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सीता की खोज के लिए हनुमान जब आकाशमार्ग से लंका जा रहे थे उस समय शलिका विद्या के किले के रक्षक वज्रमुख की पुत्री लंकासुन्दरी से हनुमान का भयंकर युद्ध हुआ!' हनुमान ने क्षण भर में ही उसे नि:शस्त्र कर दिया। हनुमान की वीरता से आश्चर्यचकित हो वह कामवासना से हनुमान के प्रति आकर्षित हो गई। 51 लंकासुन्दरी ने कहा कि तुम मेरे पिता के हत्यारे हो, तथा तुम ही मुझे वर रुप में प्राप्त होंगे, ऐसी साधुओं की भविष्यवाणी है। अतः हे हनुमान, आप मेरा पाणिग्रहण करो। 5 इसी समय हनुमान ने लंकासुन्दरी से गांधर्व विवाह किया।
उस समय एक तरफ जब हनुमान एवं लंकासुन्दरी रात्रि भर निर्भय होकर रतिक्रीड़ा में मस्त थे तब दूसरी तरफ रजस्वला स्त्री की तरह पति से दूर चक्रवाकी क्रंदन रही थी, कामीजनों को मिलने के लिए उत्सुक दृतियां निश्शंक चेष्टाएँ करने लगी थीं एवं झांझरयुक्त अभिसारिकाएँ श्यामवस्त्रयुक्त कस्तूरी से विलेपित हो घूम रही थीं। इस प्रकार हनुमान ने रात भर लंकासुन्दरी के साथ देहसुख प्राप्त किया। इतना ही नहीं, हनुमान के पुत्र भी था, जिसे राज्य देकर हनुमान ने धर्म रत्न मुनि के पास दीक्षा ली।' इस प्रकार हजारों कन्याओं से परिणित होकर पुत्रादि, राज्यादि का सुखोपभोग कर हनुमान को दीक्षित करने की यह कल्पना जैनाचार्यों की नव्य देन है।
(४) राम के पूर्वजों का भव्य इतिहास : रामचरितमानस में तुलसी राजा दशरथ का परिचय करवाते हुए लिखते हैं- "अवधपुरी रघुकुल मनि राऊ। बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊ। परन्तु जैनरामायण में हेमचंद्र ने राम के पूर्वजों का भव्य इतिहास प्रस्तुत किया है। यह इतिहास भले ही ब्राह्मण रामकथात्मक ग्रंथपरंपरा से मेल न खाता हो, परंतु जैनाचार्यों का नवीन कल्पना साहस तो अवश्य है ही। त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ७ के सर्ग चार में राम के पूर्वजों का इतिहास दिया है जिसका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
अयोध्या में ऋषभदेव स्वामी के शासनकाल में इक्ष्वाकु वंशीय सूर्यवंश में असंख्य राजा हुए। बीसवें तीर्थंकर के समय में विजय नामक राजा के हिमचूला नामक उसकी रानी से वज्रवाहु व पुरंदर नामक दो पुत्र हुए। वज्रबाहु का विवाह नागपुर के राजा इभवाहन की रानी चूड़ामणि से उत्पन्न "मनोरमा' से हुआ। वज्रबाह को एक मुनि के दर्शन मात्र से वैराग्य हो गया एवं उसने संयम ग्रहण किया। उसके पीछे-पीछे उदयसुन्दर, मनोरमा एवं अन्य राजकुमारों ने भी दीक्षा ग्रहण की। अनुकरण करते हुए विजयराजा ने अपने पुत्र पुरंदर को एवं पुरंदर ने अपने पुत्र कीर्तिधर को राज्य देकर संयम ग्रहण किया। 62 कीर्तिधर ने सुकौशल को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण की। सुकौशल ने भी अपनी गर्भस्थ रानी चित्रमाला के उदरपुत्र का राज्याभिषेक कर मुनि कीर्तिधर से संयम ग्रहण किया। चित्रमाला ने हिरण्यगर्भ को जन्म
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