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काव्यशास्त्री हेमचंद्र ने स्वयं की कृति काव्यानुशासन के अध्याय आठ के तेरह सूत्रों में प्रबंध काव्य-भेदों एवं काव्य- लक्षणों पर लेखनी चलाई है। तदनुसार इस कृति में महाकाव्य के संपूर्ण लक्षण विद्यामान हैं निष्कर्षतः त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (जैन रामायण) सफल पौराणिक काव्य, चरितकाव्य एवं भारतीय व पाश्चात्य लक्षणों से युक्त पूर्ण महाकाव्य है अतः इसे 'पौराणिक चरित महाकाव्य "" नाम से विभूषित करना इसके काव्य रूप का सही आकलन होगा ।
(८) सूक्तियाँ : त्रिषष्टिशलाकापुरुपचरित उपदेशपरक एवं प्रचारात्मक काव्य हैं। इसमें जनमानस को धार्मिक भावना से जोड़ने के लिए उक्ति चमत्कार का प्रयोग किया गया है । उक्तियों या सुभाषितों द्वारा बात को सहज में सम्प्रेषित किया जाता है और इस प्रकार का संप्रेषण अधिक स्थायित्व प्राप्त करता है । यहाँ हमारा लक्ष्य पाठकों को त्रि.श.पु.च. पर्व ७ में आई सूक्तियों का परिचय देना है। इससे पाठकों को जैन रामायण के सूक्ति भंडार की जानकारी मिल सकेगी।
जैन रामायण की सूक्तियाँ :
१.
प्रायः तत्वज्ञ पुरुषों का क्रोध सुख से शांत हो जाने वाला होता है 370 जैसा राजा वैसी ही प्रजा । 371
२.
३.
४.
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७.
स्त्री का पराभव असहनीय होता है । 372
सज्जनों को उपकारी साधु विशेष वंदनीय होते हैं 373
सेनापति से हीन सेना मरी हुई ( हारी हुई) ही है। 374
वीरों के साथ लम्बे समय की शत्रुता मौत के लिए ही होती है । 375 बाहुबल युक्त पुरुषों को अन्य विचार ( युद्ध के सिवाय) नहीं आते 1376
८.
जय की इच्छा रखने वालों के लिए प्राण प्रायः तिनके के समान होते हैं । 377 एक हाथ से ताली नहीं बजती। 378
९.
१०. बड़ों के अपराध होने पर भी उन्हें नमस्कार करना ही निवारण है । 379
११. महापुरुषों का आगमन किसके दुःखों को दूर नहीं करता ।
380
१२. पराक्रमी पुरुषों को युद्ध रूपी अतिथि प्रिय होते हैं। 381
१३. महान ओजयुक्तों के लिए क्या असाद्य है। 382 (अर्थात् सब कुछ साध्य है ।) १४. राजा किसी के आत्मीय नहीं होते। 383
१५. सच्ची या झूठी प्रसिद्धि मनुष्यों को विजय प्रदान करने वाली होती है। 384 १६. सत्यवादियों को क्षोभ नहीं होता। 385
१७. बिना विचारे किया गया कार्य आपत्तिप्रद होता है।
386
१८. पुत्र ( प्रप्ति) के लिए क्या नहीं किया जाता। 87
( अर्थात् सभी उपाय किए जाते हैं)
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