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अप्टम सर्ग : छंद १ से ३२५ - अनुष्ट म्।।
अंत्य (३२६वां) वसंततिलका - पाद - ४ प्रत्येक पाद में १४ अक्षर । यति ८ व १४ पर।
अक्षर गण - न भ ज ज ग ग नवम सर्ग : छंद १ से २३२ - अनुष्ट प।
अंत्य (२३३वां) रथोद्वता - ४ पाद प्रत्येक पाद में ११ अक्षर, यति ३, ११
अक्षर गण - र न र ल ग षष्टम सर्ग: छंद १ से २६१ - अनुष्टप्।
अंत्य (२६२वां) शार्दूलविक्रीडित - पाट ४ । प्रत्येक पाद में १९ अक्षर । यति १२ व १९ पर।
अक्षर गण - म स ज स त त ग विश्लेषण : छंद
सर्ग अनुष्टुप् सर्ग १ से १० प्रत्येक के अंतिम छंद को छोड़कर। रथोद्वता
सर्ग - १ व ९ वसंततिलका सर्ग - ३, ४, ५ व ८ मालिनी
सर्ग - २ व६ शार्दूलविक्रीडित सर्ग - ५ व १०
अक्षर-गण-छन्द या वृत्तः तीन-तीन अक्षरों की एक-एक इकाई लेकर उसमें से प्रत्येक का लघु-गुरु की दृष्टि से गण निर्धारण किया जाता है। शेष एक या दो अक्षर लघु का "ल" गण व गुरु का "ग" गण माना जाता है। अंत्य अक्षर लघु होने पर भी गुरु ही माना जाता है एवं विसर्ग युक्त ह्रस्व अक्षर ही मानते हैं तथा-मनः शक्ति नः एवं श क्रमश: गुरु - गुरु हैं।
अक्षरयुक्त छंद के प्रत्येक पाद में ३ + ३ + ३ = ९ कुल अर्थात् ३ मुख्य गण ही होते हैं, शेष दो अक्षरों के लघु गुरु ही गण रहते हैं। वसंततिलका में दो अक्षर तथा सार्दूलविक्रीडित में एक अक्षर शेष रहता है जो लघु-गुरु गण द्वारा पूर्ण छंद हो जाता है। लघु को। चिह्न से तथा गुरु कोऽचिह्न से दर्शाते हैं। कहीं-कहीं लघु - १ तथा, गुरु + चिह्न से भी दर्शाया जाता है।
गणों का विवरण : कृति में प्रयुक्त गणों का संक्षिप्त विवरण
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