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१०३. अथ राझी : सुतान्मंत्रिमुख्यानाहूय पार्थिवः । आपप्रच्छे यथौचित्यं
दत्तालापसुधारस : /४१९ १०४. ततो ययाचे कैकेयी त्वं चेत् पव्रजसि स्वयम्।
स्वामिन् विश्वंभरामेताम् भरताय प्रयच्छ तत्
त्रिशपुच. पर्व ७ ४/४२६ १०५. त्रिशपुच. कपर्व ७४/४२८ १०६. रामोडपि हप्टोडभाषिष्ट मात्रेदं साधुयाचितम् ।
यन्मद् भ्रात्रे भरताय राज्यादानं महौजसे ।। प्रिशपुच पर्व ७-४/४२९ १०७. त्रिशपुच. पर्व ७ ४/४३० १०८. वही, ४/४३१ १०९. वही, ४/२४२ ११०. वही, ४/४२३ १११. वही, ४/४४२ ११२. वही, ४/४५१ ११३. वही, ४/४५३ ११४. वही, ४/४२७ ११५. निर्भयः साम्प्रतंहत्वा भरतात्कुलपांसनात् नयस्यामिं राज्यं किं रामे विरामाय
निजक्रुघः । त्रि श पुच ७-४/४६९ ११६. त्रिशपुच. पर्व ७ - ४/४७१ ११८. गमिष्यति रामों वनं अनुगमिष्यामि तं त्वहम्।
___ मर्यादाब्धिं बिनापार्यन स्थातुं लक्ष्मण क्षमः ॥ प्रिशपुच. ७ ४/४७३ ११९. वही, ४/४८० १२०. वही, ४/४८२ १२१. वही, ४/४५ १२२. वही, ४/४५७-४५८ १२३. वही, ४/४६१ १२४. वही, ४/४६३-४६५ १२५. त्रिशपुच. पर्व ७ - ४/४४७ १२६. वही, ४/४४९ १२७. वही, ४/४५६ से ४५८ १२८. वही, ४/४५९ १२९. त्रिशपुच. पर्व ७ - ४/४७४ १३०. वही, ४/४७५ १३१. वही, ४/४७६ १३२. त्रिशपुच. पर्व ७ - ४/४२०
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