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महामुनि सुव्रत से राम ने शत्रुघ्न, सुग्रीव, विभीषण, विराधित एवं अन्य राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। यह देख अन्य सोलह हजार राजाओं एवं तीस हजार महिलाओं ने भी दीक्षा ली। 514 राम ऋषि ने गुरु-चरणो में साठ वर्ष तक तपस्या की तथा अरण्य को विहार किया। अरण्य में एक रात्रि को उन्हें अवधि ज्ञान प्राप्त हुआ जिसमें लक्ष्मण के नरकवास का भी पता चला। राम सोचने लगे, लक्ष्मण ने अपनी उम्र के बारह हजार वर्ष व्यथा गुमा दिए. यह सोच राम कठोर तपस्या करने लगे। 515
अरण्य में रहते हुए राम ने प्रतिज्ञा की कि अगर समय पर स्वतः भिक्षा मिल जाए तो पारणा करूँगा, अन्यथा नहीं। इस प्रतिज्ञा से समय पर भोजन न मिलने से राम का शरीर अति कृश हो गया। एक दिन प्रतिनंदी राजा ने अरण्य में आकर राम मुनि को पारणा करवाया एवं सपरिवार स्वयं ने भी भोजन किया। राम ऋषि के उपदेश को सुनकर प्रतिनंदी ने श्रावकत्व स्वीकार किया। १६
अब धीरे-धीरे राम उग्र तप की ओर अग्रसर होने लगे। दो-दो माह के अंतर से पारणा करते। विचरण करते हुए एक दिन जब राम कोटिशिला पर बैठे थे तब सीतेन्द्र सीता के रुप में सखियों सहित वहाँ आए एवं राम से संयम छोड़ पुनः पति-पत्नीवत् रहने का आग्रह किया। उनकी इन क्षुद्र क्रीड़ाओं से राम मुनि अप्रभावित रहे। 57 माध मास की शुक्ला द्वादशी को उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। 518 तब सीतेन्द्र ने अपना असली रुप लेकर देवताओं सहित राम के कैवल्य ज्ञान की महिमा की। 19 कैवल्य ज्ञान प्राप्त रामर्षि ने सीता को धर्म उपदेश देते हुए रावण व लक्ष्मण को चौथे नरक में बताया। उन दोनों के संपूर्ण भविष्य का वर्णन किया। 520 राम को प्रणाम कर सीतेन्द्र सीधे लक्ष्मण के पास नरक में पहुंचे वहाँ सीतेन्द्र ने लक्ष्मण, रावण व शंबूक को अग्निकुंड में डाला। फिर वहाँ से निकल तेल की कुंभी व काल भट्ठी में डाला। 522 खीतेन्द्र ने उन्हें असुरों से छुड़ाकर उनका भविष्य कहा जो राम ने सीतेन्द्र को सुनाया था। सीता ने उन्हें देवलोक में ले जाने का प्रयत्न किया। परंतु लक्ष्मणादि ने कहा- आप हमे मुक्त कर स्वर्ग को जाओ। वहां से सीतेन्द्र ने नंदीश्वर तीर्थ को प्रस्थान किया।
नंदीश्वर की तीर्थयात्रा से लौटते समय देवकुरु प्रदेश में सीतेन्द्र ने भामंडल राजा के जीव को देखा। पूर्ण-स्नेह के कारण सीतेन्द्र ने उन्हें उपदेश दिया एवं स्वयं अपने कल्प में गए। 524
___अब राम जगत के जीवों को धर्म-उपदेश देते हुए पचीस वर्ष तक पृथ्वी पर विचरते रहे। अपनी उम्र के पंद्रह हजार वर्ष पूर्ण कर शैलेशी अवस्था प्राप्त कर राम शाश्वत सुख एवं आनंद के धाम मोक्ष को प्राप्त हुए। 525
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