________________
गए। अंगद ने मंदोदरी को रावण के सामने केशों से पकड़कर खींचा, परंतु रावण ध्यानमग्र रहा। तभी विद्या प्रकट हुई एवं बोली, मैं सिद्ध हो गई हूँ। वोल, मैं क्या करूँ। मैं विश्व को तेरे अधीन कर सकती हूँ। 433 रावण बोला तुम अभी अपने स्थान पर जाओ। समय पर तुम्हे याद करूँगा, तब आ जाना। विद्या अंतर्धान हो गई एवं वानर भी वहाँ से अपने स्थान पर लौट आए। 434
(छ) रावण वध : रावण स्नान- भौजनादि से निवृत्त हो सीता के समीप गया एवं बोला, लम्बे समय तक इंतजार के बाद अब मैं राम-लक्ष्मण को मारकर तेरे साथ बलात् भोग करूँगा। 45 सीता ने प्रतिज्ञा की कि, "अगर राम, लक्ष्मण की मृत्यु होगी तो मैं अनशन पर हूँ। रावण ने सोचा मैंने यह ठीक तो नहीं किया है परंतु अब राम-लक्ष्मण को बाँधकर यहाँ लाऊँ फिर सीता को अर्पण करूँ तो ठीक रहेगा। 436 "
प्रात:काल रणक्षेत्र में लक्ष्मण व रावण का युद्ध प्रारंभ हुआ। भयप्राप्त रावण ने विद्या का स्मरण किया व उसके बल से अपने अनेक भयंकर रुप पैदा किए। 437 लक्ष्मण के सामने अनेक मायावी रावण युद्ध कर रहे थे। गरुड़ पर आरुढ़ हो लक्ष्मण तेज मुद्रा में युद्ध करने लगे। अब रावण ने अर्द्धचक्रित्व के चिह्न के चक्र का स्मरण कर उसे लक्ष्मण पर फेंका। चक्र ने लक्ष्मण की प्रदक्षिणा की तथा दाहिने हाथ पर स्थिर हो गया। 438 रावण विचार करने लगा कि क्या मुनि का वचन सत्य होगा रावण को विचार करते देखकर विभीषण ने कहा- हे भाई, जीवित रहने की इच्छा हो तो अभी भी सीता को सोंप दो। रावण कोपायमान होकर बोला-चक्र तो है ही, फिर भी मैं मुट्ठियों के प्रहार से लक्ष्मण को मार दूंगा। तभी लक्ष्मण ने उसी चक्र से रावण के सीने को चीर दिया। ज्येष्ट मास की कृष्ण एकादशी दिन के पिछले प्रहर में रावण मृत्यु को प्राप्त हुआ एवं चौथे नरक में गया।
(ज) रावण वध के पश्चात् : रावण के मरणोपरांत विभीषण ने राक्षसों से कहा- ये राम एवं लक्ष्मण आठवें बलदेव एवं वासुदेव हैं अतः तुम्हें इनकी शरण में जाना चाहिए। तब राक्षसों ने राम का आश्रय स्वीकार किया तथा राम व लक्ष्मण ने भी उन्हें अनुग्रहीत किया। 439 रावण की मृत्यु पर विभीषण ने भी शोकमग्न होकर अपने पेट में छुरी मारकर जीवन-लीला समाप्त करनी चाही, पर तभी राम ने उसे पकड़ लिया। 440 राम ने विभीषण, मंदोदरी आदि को समझाया कि- पराक्रमी एवं देवताओं को भी भयभीत करने वाला रावण वीरता से मृत्यु को प्राप्त कर कीर्ति का पात्र हुआ है। अत: शोक को छोड़ इसकी अंतिम क्रिया करो। 441
फिर राम ने कुंभकर्ण, इन्द्रजीत, मेघवाहन आदि को मुक्त किया। मुक्त हुए इन सभी ने गोपीचन्दन के काष्ठ की चिता बना कपूर-अगरादि से मिश्रित अग्नि से रावण का अग्नि संस्कार किया। राम ने भी पद्मसरोवर में
100