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भगवान् श्री ऋषभदेव/३१
२२. धर्मनीति २३. वर्णिकावृद्धि २४. सुवर्णसिद्धि २५. सुरभितैलक २६. लीलासंचरण २७. हय-गजपरीक्षण २८. पुरूष-स्त्रीलक्ष २९. हेमरत्न भेद ३०. अष्टादश लिपिपरीच्छेद ३१. तत्काल बुद्धि ३२. वस्तु सिद्धि ३३. काम विक्रिया ३४. वैद्यक क्रिया ३५. कुम्भ भ्रम ३६. सारिश्रम ३७. अंजनयोग ३८. चूर्णयोग
३९. हस्तलाघव ४०. वचन-पाटव ४१. भोज्य विधि ४२. वाणिज्य विधि ४३. मुखमण्डन ४४. शालि खण्डन ४५. कथाकथन ४६. पुष्प ग्रंथन ४७. वक्रोक्ति ४८. काव्यशक्ति ४९. स्फारविधिवेष ५०.सर्वभाषा विशेष ५१ अभिधान ज्ञान ५२. भूषण-परिधान ५३. भृत्योपचार ५४. गृहाचार ५५. व्याकरण ५६. परनिराकरण ५७. रन्धन ५८. केशबन्धन ५९. वीणानाद ६०. वितण्डावाद ६१. अंक विचा ६२. लोक व्यवहार ६३. अन्त्याक्षरिका
६४. प्रश्न प्रहेलिका अभिनिष्क्रमण
भगवान् ऋषभ का जीवन चौरासी लाख पूर्व का था। उसमें तिरासी लाख पूर्व समय उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक मूल्यों की स्थापना में बिताया। लोक-जीवन के परिमार्जन में उनका अथक परिश्रम रहा। लोगों ने उनसे सहअस्तित्व तथा परस्पर सहयोग का महत्व समझा। तात्कालिक व्यावहारिक जीवन की कठिनाइयों का समाधान करने के बाद भगवान् ऋषभ ने धर्म-नीति का प्रवर्तन करने का निश्चय किया। __उस समय पांचवें देवलोक के नौ लोकान्तिक देव-सारस्वत, आदित्य, वह्नी वरूण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय और रिष्ट ऋषभ के उपपात में पहुंचे
और उन्हें वंदन कर निवेदन करने लगे 'भगवन् ! लोक व्यवहार की संपूर्ण व्यवस्था आपने पूरी कर ली है, अब आप धर्मतीर्थ का प्रवर्तन कीजिए। इस तरह निवेदन कर देव अपने-अपने विमान में चले गये।
इस संदर्भ में पूर्ण विनिश्चय करके राजा ऋषभ ने पूरे भूमंडल को सौ हिस्सों में विभक्त करके भरत को विनीता व निन्नानवें पुत्रों को अन्य क्षेत्रों की सार-संभाल का भार सौंपा। सब प्रकार से पूर्णतः निवृत्त होकर वे वर्षीदान देने लगे। वर्षीदान से सब लोगों को पता लग गया कि बाबा अब घर छोड़ कर जाने वाले हैं | भोले-भाले लोग इस बात से बड़े बेचैन हुये कि बाबा हगको छोड़कर जा रहे हैं, अब क्या करेंगे? हम लोगों की उलझनों को कौन सुलझायेगा? यद्यपि भरत आदि सौ भाइयों