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भगवान् श्री ऋषभदेव/२१
एक दिन कुछ युगल ऋषभ कुमार के पास बैठे बात कर रहे थे। अभाव के बारे में जिक्र चल पड़ा। सभी दुःखी थे, आतंकित थे। ऋषभदेव से पूछ बैठे- “इसका सही समाधान भी होगा या यों ही लड़-झगड़कर सबको मरना पड़ेगा? जीना दूभर हो रहा है।"
ऋषभ ने मुस्कराकर कहा-समय के साथ व्यवस्था बदलनी पड़ती है, अपनी आदतों में परिवर्तन करना पड़ता है। ऐसा करने पर समस्या स्वतः समाप्त हो जाती है। अब कुलकर व्यवस्था से काम नहीं चलेगा। अब तो एक विधिवत् राजा होना चाहिए, उसके अनुशासन से ही समस्या सुलझ सकती है। राजा की सूझ-बूझ से ही अभाव समाप्त हो सकता है।'
उपस्थित युगल जनों ने कहा- 'हम तो जानते नहीं, राजा क्या होता है?' तब ऋषभ ने राजा का दायित्व बताया। युगलों ने कहा- 'ऐसी क्षमता तो सिर्फ आप में है, औरों में नहीं । आप ही यह दायित्व संभाले ।' ऋषभ ने कहा- 'तुम कुलकर नाभि से निवेदन करो, वे शायद आपकी बात मान ले।'
युगल मिलकर कुलकर नाभि के पास आए। उनसे राजा बनने की प्रार्थना की। कुलकर नाभि पहले से ही ऊबे हुए थे और निराश थे। अपनी व्यवस्था से स्वयं असंतुष्ट थे। निःश्वास छोड़ते हुये वे बोले- 'मेरे वश का रोग नहीं है। जमाना बहुत खराब आ चुका है। इसमें मेरी बुद्धि काम नहीं करती, सचमुच हम अभागे हैं, तभी ऐसा अभाव देखना पड़ रहा है। पेट के लिये तकरार, कितने शर्म की बात है! अपने पूर्वज बड़े सुखी थे। उनके जीवन में ऐसा कुछ नहीं हुआ। जाओ, तुम ऋषभ के पास ही जाओ। वही राजा बनेगा और समस्याओं को सुलझायेगा। अब कल से तुम्हारी समस्याएं और शिकायतें ऋषभ के पास किया करो, वही तुम्हें समाधान देगा। मुझे अब छुटकारा दो।'
अब युगल अपनी कल्पना से ऋषभ के राज्याभिषेक की तैयारियां करने लगे। कई तरह के फूलों से ऋषभ के शरीर को अलंकृत किया। ऋषभ को उच्च आसन पर बिठाकर पैरों में जलाभिषेक करने लगे। अभिषेक के क्रम में सर्वप्रथम पदाभिषेक हुआ था। इन्द्र ने अपने अवधिदर्शन से यह दृश्य देखा तो गद्गद् हो उठा । तुरन्त मृत्यु-लोक में आया। लोगों के विनय की प्रशंसा करते हुये उस स्थान का नाम उसने विनीता रखा। आगे चलकर वहीं पर विनीता नाम की नगरी बसी। कृषि कर्म शिक्षा
ऋषभ के समक्ष सबसे पहला काम था- खाद्य-संकट मिटाने का । शेष समस्याएं उसी से जुड़ी हुई थीं। वे जानते थे-भर पेट भोजन मिलने पर ये सभी अनुशासित बन जाएंगे।
ऋषभ ने सबसे कहा-'समय बदल गया है, अतः अपने को बदलो । आज तक