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________________ भगवान् श्री महावीर/२१७ करके आत्म-कल्याण करेंगे, “एकाभवतारी बनेंगे।' ग्रन्थों में आता है कि पांचवें आरे के अन्त में दुप्रसह नामक साधु, फल्गुश्री नाम की साध्वी, नागिल नाम का श्रावक तथा सत्यश्री नाम की श्राविका रहेंगे। अन्तिम दिन अनशन कर ये चारों स्वर्गस्थ बनेंगे। वे ही इस अवसर्पिणी के अंतिम एकाभवतारी होंगे। महावीर का अप्रतिहत प्रभाव भगवान् महावीर का विहार क्षेत्र वैसे तो सीमित रहा। ज्यादातर अंग, मगध, काशी, कौशल, सावत्थी, वत्स आदि जनपदों में विचरते रहे | भगवान् का सबसे लंबा विहार सिंधु-सौवीर देश में हुआ। __ भगवान् महावीर के समय अनेक धर्म-प्रवर्तक विद्यमान थे। साधना, ज्ञान तथा लब्धियों के माध्यम से वे अपना-अपना प्रभाव जमाये हुए थे। भगवान् महावीर के अतिरिक्त छह आचार्य और भी तीर्थंकर कहलाते थे। वे स्वयं को सर्वज्ञ बतलाते थे। फिर भी भगवान् महावीर का अप्रतिहत प्रभाव था। वैशाली राज्य के गणपति चेटक, मगध सम्राट् श्रेणिक, अंग सम्राट् कोणिक, सिंधु नरेश उदाई, उज्जयनी नरेश चन्द्रप्रद्योतन आदि अनेक गणनायक सम्राट्, लिच्छवी व वज्जि गणराज्यों के प्रमुख भगवान् के चरणसेवी उपासक थे। आनन्द, कामदेव, शकडाल और महाशतक जैसे प्रमुख धनाढ्य, समाज सेवी, धनजी जैसे चतुर व्यापारी तथा शालिभद्र जैसे महान् धनाढ्य व विलासी व्यक्ति भी आगार व अणगार धर्म के अभ्यासी बने थे। आर्य जनपद में भगवान् का सर्वांगीण प्रभाव था। उन्होंने सामाजिक बुराइयों को खत्म कर नये सामाजिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना की। महावीर के प्रमुख सिद्धांत भगवान् महावीर ने सर्वज्ञ होते ही तत्कालीन रूढ़ धारणाओं पर प्रबल प्रहार किया। उन्होंने प्रचलित मिथ्या मान्यताओं का आमूलचूल निरसन किया। उनके प्रमुख सिद्धांत निम्नांकित हैंजातिवाद का विरोध स्वयं अभिजात कुल के होते हुए भी उन्होंने जातिवाद को अतात्त्विक घोषित किया। उनका स्पष्ट उद्घोष था- मनुष्य जन्म से ऊंचा-नीचा नहीं होता। केवल कर्म ही व्यक्ति के ऊंच या नीच के मापदण्ड हैं। उन्होंने अपने तीर्थ में शूद्रों को भी सम्मिलित किया। लोगों को यह अटपटा जरूर लगा, किन्तु भगवान् ने स्पष्ट कहा- किसी को जन्मना नीच मानना हिंसा है। भगवान् की इस क्रांतिकारी घोषणा से लाखों-लाखों पीडित, दलित शूद्र लोगों में आशा का संचार हुआ। भगवान् के समवसरण में सभी लोग बिना किसी भेद-भाव के सम्मिलित होकर प्रवचन सुनते थे।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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