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________________ भगवान् श्री महावीर/२१५ कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी की रात्रि में भगवान् ने अन्तिम अनशन कर लिया। सेवा में समागत अन्नेक श्रद्धालु तथा चतुर्विध संघ को अनेक शिक्षाएं फरमाई । अन्तिम दिन-कार्तिक कृष्णा अमावस्या की संध्या में प्रभु ने अपने प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम को वेद-विद्वान् देव शर्मा को समझाने के लिए उनके यहां भेजा। गौतम स्वामी भगवान् की आज्ञा से वहां चले गये तथा उनसे तात्त्विक चर्चा की। कार्तिक कृष्णा अमावस्या को अंतिम समवसरण जुड़ा । इसमें बहुत सारे राजे, तथा विशाल जनमेदिनी अंतिम देशना सुनने उपस्थित हुई । भगवान् ने प्रवचन शुरू किया। भगवान् के बेले का तप था। उन्होंने ५५ अध्ययन पुण्यफल विपाक और ५५ अध्ययन पापफल विपाक संबंधी कहे । बीच में कई तरह के प्रश्नोत्तर चलते रहे। उसके बाद ३६ अध्ययन कहे जो आज उत्तराध्ययन के रूप में प्रस्तुत हैं। भगवान् ने १६ प्रहर तक देशना दी। उस बीच प्रश्नोत्तर व चर्चा चलती रही। इन्द्र द्वारा आयु वृद्धि की प्रार्थना ____ भगवान् के मोक्ष-गमन का समय सन्निकट था । देवों व मानवों की भारी भीड़ थी। शक्र ने वंदना कर पूछा-“भंते ! आपके जन्मकाल में जो उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र था, उस पर इस समय भस्म ग्रह संक्रान्त होने वाला है जो जन्म-नक्षत्र पर दो हजार वर्ष तक संक्रान्त रहेगा। आप अपना आयुकाल थोड़ा बढ़ा लें तो वह प्रभावी नहीं हो सकेगा।" ___ भगवान् ने कहा- 'इन्द्र ! आयु को घटाने-बढ़ाने की किसी में शक्ति नहीं है। जब जैसा होना है वह होता ही है। ग्रह तो मात्र उसके सूचक होते हैं। इस प्रकार प्रभु ने इन्द्र की शंका का समाधान किया। निर्वाण _ छत्तीस अध्ययनों की प्ररूपणा के पश्चात् भगवान् ने सैंतीसवें प्रधान नामक अध्ययन को शुरू किया। उसकी बीच में ही देशना देते-देते प्रभु पर्यंकासन में स्थित हो गए । अर्धरात्रि के समय बादर काय योग में स्थित रहकर बादर मनोयोग और बादर वचन योग का निरोध किया, फिर सूक्ष्म काय योग में स्थित रहकर बादर काय योग व आनापान का निरोध किया, और उसके बाद सूक्ष्म मन व सूक्ष्म वचन योग को रोका। शुक्ल ध्यान के तीसरे चरण में सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती को प्राप्त कर सूक्ष्म काय योग का निरोध किया। समुच्छिन्नक्रिया अनिवृत्ति नामक चौथे चरण में पहुंचकर अ इ उ ऋ लु- इन हस्वाक्षर उच्चारण जितने काल तक शैलेशी अवस्था को प्राप्त किया, चार अघाति कर्म -वेदनीय, नाम गोत्र व आयुष्य का क्षय किया। इसके साथ सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बने और परिनिर्वाण को प्राप्त किया। पीछे से प्रभु का वह शरीर निस्पंद होकर चेतनाहीन बन गया। उपस्थित शिष्य समुदाय ने भगवान् के विरह को गम्भीर वातावरण में कायोत्सर्ग करके माध्यस्थ
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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