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________________ भगवान् श्री महावीर/२०९ की प्राप्ति और निमित्त शास्त्रों का अभ्यास उन्होंने श्रावस्ती में ही किया था। श्रावस्ती में अयंपुल गाथापति और हालाहला कुंभारिण गोशालक के परम भक्त थे। प्राय गोशालक हालाहला कुंभारिण की भांडशाला में ठहरता था। भगवान् महावीर के छद्मस्थ काल में गोशालक उनके साथ छह वर्ष तक रहा था। महावीर से तेजोलेश्या प्राप्ति का उपाय पाकर वह उनसे अलग हो गया था। तेजोलेश्या एवं अष्टांग निमित्त ज्ञान से वह स्वयं को बहुत प्रभावशाली मानता था। इसी आधार पर वह कहा करता था-"मैं जिन, सर्वज्ञ एवं केवली हूं।" उनकी इस घोषणा की नगरी में बड़ी चर्चा थी। गौतम स्वामी ने नगर में भिक्षार्थ घूमते हुए यह जनप्रवाद सुना कि श्रावस्ती में दो जिन (तीर्थंकर) विराज रहे हैं। एक श्रमण भगवान् महावीर और दूसरे मंखलिपुत्र गोशालक। गौतम स्वामी ने इस संदर्भ में पूछा तो भगवान् ने कहा'गौतम ! गोशालक जिन, केवली व सर्वज्ञ नहीं है। वह अपने विषय में जो घोषणा कर रहा है वह मिथ्या है। यह शरवण ग्राम के बहुल ब्राह्मण की गौशाला में जन्म लेने से गोशालक व मंखलि नामक मंख का पुत्र होने से मंखलिपुत्र कहलाता है। यह आज से चौबीस वर्ष पूर्व मेरा शिष्य बना था। छह वर्ष तक मेरे साथ रहा था। मेरे द्वारा बताये उपाय से तेजोलब्धि प्राप्त की, दिशाचरों से निमित्त शास्त्र पढ़ा। उसी आधार पर यह कहता फिर रहा है। वस्तुतः इसमें अभी सर्वज्ञ बनने की अर्हता नहीं है।' महावीर-गौतम संवाद पूरे नगर में फैल गया। मंखलिपुत्र गोशालक ने भी यह बात सुनी तो वह बहुत कोपायमान हुआ। वे अपने संघ के साथ इस बारे में विमर्श करने लगे। उस समय महावीर के शिष्य आनंद नित्य प्रति बेले-बेले की तपस्या । कर रहे थे। पारणा के लिए उस कुंभारिण के घर से आगे होकर जा रहे थे । गोशालक ने देखते ही उन्हें रोककर कहा-'देवानुप्रिय आनंद ! तुम्हारे धर्मगुरु महावीर देव, मनुष्यों द्वारा बहुत प्रशंसित व पूजित है, पर वे मेरे बारे में कुछ भी कहेंगे तो मै मेरे तपस्तेज से उन्हें भस्म कर दूंगा। जा अपने धर्माचार्य के पास, मेरी कही हुई बात उन्हें सुना दे। ___ गोशालक का यह क्रोधपूर्ण उद्गार सुनकर आनंद स्थविर घबरा गये। वे तीव्रगति से महावीर के पास गये और गोशालक की बातें सुनाकर बोला- 'भंते! गोशालक अपने तप तेज से किसी को जलाकर भस्म करने में समर्थ है।' भगवान् ने कहा- 'आनंद ! अपने तप तेज से गोशालक किसी को भी जलाने । में समर्थ है पर वह अर्हत्-तीर्थंकर को जलाकर भस्म करने में समर्थ नहीं है। तुम गौतम आदि सभी मुनियों को सूचना कर दो कि गोशालक इधर आ रहा है। इस समय उसके भीतर अत्यन्त मलिन भाव है, द्वेष से भरा हुआ है इसलिए वह कुछ
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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