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________________ २०६/तीर्थंकर चरित्र दर्शन के आधार पर उसने घोषणा कर दी कि देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष व उत्कृष्ट दस सागर है। नगर में यह चर्चा जब गणधर गौतम ने सुनी तो भगवान् से जिज्ञासा की। भगवान् ने कहा- 'यह सही नहीं है। देवों की उत्कृष्ट आयु देतीस सागर है। यह बात उस परिव्राजक के कानों तक पहुंची। वे शंकित हो गये और प्रभु के पास आये। जिनेश्वर देव का प्रवचन सुनकर उनके पास दीक्षित हो गये, ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और अंत में निर्वाण को प्राप्त किया। वहां से प्रभु राजगृह पधारे, वहीं चातुर्मास किया। वहां मंकाई, किंकत, अर्जुनमाली, कश्यप, गाथापति वरदत्त ने संयमी जीवन स्वीकार किया। सर्वज्ञता का सातवां वर्ष राजगृह चातुर्मास के बाद विहार न करके भगवान् वहीं ठहर गये । इस सतत प्रवास का आशातीत लाभ भी मिला। राजगृह नगर के अनेक प्रतिष्ठित नागरिकों ने श्रमण धर्म एवं श्रादक धर्म स्वीकार किया। श्रेणिक के जालि, मयालि आदि तेईस पुत्रों एवं नंदा, नंदमती आदि तेरह रानियों ने भगवान् के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। ____ मुनि आर्द्रक ने कुछ हस्तितापसों एवं स्वप्रतिबोधित पांच सौ चोरों के साथ भगवान् के पास दीक्षा स्वीकार की। इस वर्ष भी भगवान् ने वर्षावास राजगृह में ही बिताया। सर्वज्ञता का आठवां वर्ष वर्षावास प्रवास संपन्न कर भगवान् आलंभिया पधारे । आलंभिया से कौशंबी पधारे। उस समय उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योतन ने कौशंबी को घेर लिया था। कौशम्बी पर महारानी मृगावती शासन कर रही थी। उनका पुत्र उदयन नाबालिक था। चंडप्रद्योतन मृगावती के रूप-लावण्य पर मुग्ध हो उसे अपनी रानी बनाना चाहता था। ___ भगवान् के आगमन से मृगावती को बहुत प्रसन्नता हुई। वह महावीर के समवसरण में पहुंची। उस समय चंडप्रद्योतन भी भगवान् की सेवा में उपस्थित था। महारानी ने आत्मकल्याण का सुंदर अवसर जानकर सभा के बीच खड़ी होकर बोली- “भगवन् ! मैं प्रद्योत की आज्ञा लेकर आपके पास दीक्षा लेना चाहती हूं तथा अपने पुत्र उदान को इनके संरक्षण में छोड़ती हूं।" प्रद्योत की यद्यपि दीक्षा की स्वीकृति देने की इच्छा नहीं थी, पर भगवान् के समक्ष महती उपस्थिति में लज्जावश इन्कार नहीं कर सका। ___अंगारवती आदि चंडप्रद्योतन की आठ रानियों ने भी दीक्षा की अनुमति मांगी। प्रद्योत ने उन्हें भी आज्ञा दे दी। भगवान् ने मृगावती, अंगारवती आदि रानियों को दीक्षा प्रदान की। कौशंबी से विहार कर महावीर वैशाली में पधारे, वहीं उन्होंने चातुर्मास किया।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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