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________________ प्रवेश भारतीय संस्कृति एक प्राणवान संस्कृति है। यह त्यागमय भावनाओं से अनुप्राणित है। इस उज्ज्वल संस्कृति में तीन धाराओं का मूल्यवान् योग रहा है-१ जैन, २ बौद्ध, ३ वैदिक। ये तीनों धाराएं इसी भारत भूमि पर प्रसूत हुई, पल्लवित व पुष्पित हुई। इन तीनों ने भारतीय जन मानस को प्रभावित किया है और उसमें अपना स्थान बनाया है। आज भी भारतीय संस्कृति में त्याग, सहिष्णुता, धैर्य जैसे गुण समाये हुये हैं जो इन तीनों के मूल में हैं। जैन धर्म की प्राचीनता जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। "जैन धर्म' नाम नया है। यह नाम भगवान् महावीर के बाद जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने प्रयुक्त किया है । यह नाम उनके विरचित ग्रंथ विशेषावश्यक भाष्य में उल्लिखित है। उसके बाद तो उत्तरवर्ती साहित्य में 'जैन' शब्द प्रचुर रूप में व्यवहृत हुआ है। इससे पूर्व भगवान् ऋषभ से भगवान् महावीर तक विभिन्न नामों से अभिहित होता रहा है। प्रारंभ में उसका नाम श्रमण धर्म था, फिर आर्हत् धर्म हुआ। महावीर के युग में उसे निर्ग्रन्थ धर्म कहा जाता था। __ सत्य की उपलब्धि में प्राचीन और नवीन का कोई महत्त्व नहीं होता। जिससे आत्म-साक्षात्कार हो सके, वही उपयोगी है। इतिहास की दृष्टि से पहले-पीछे का बड़ा महत्त्व है। यह प्राप्त प्रमाणों के आधार पर निःसंदेह कहा जा सकता है कि जैन धर्म प्राग्वैदिक है और बौद्ध अर्वाचीन है। ___कई इतिहासवेत्ताओं में एक भ्रम पलने लगा है। कई जैन धर्म को वैदिक धर्म की शाखा मानते हैं तो कई बौद्ध धर्म की। यह भ्रम भगवान् महावीर को जैन धर्म का प्रवर्तक मानने से हुई है। जैन धर्म के प्रथम प्रवर्तक भगवान् ऋषभ थे। और महावीर अंतिम प्रवर्तक थे। उन्होंने प्राचीन परंपराओं को आगे बढ़ाया और समसामयिक विचारों को जनता के सामने प्रस्तुत किया। महात्मा बुद्ध महावीर के समकालीन थे, इसलिए यह अर्वाचीन सिद्ध हो जाता है । वैदिक मत में सबसे प्राचीन वेद है। विद्वान् लोग वेदों को पांच हजार साल पुराना मानते हैं। तिलक आठ हजार साल प्राचीन बताते हैं। वेदों में भगवान् ऋषभ, अरिष्टनेमि व श्रमणों का उल्लेख मिलता है, 'मुनयो वातरशनाः' अर्थात् उग्रतपस्वी मुनि के रूप में श्रमणों
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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