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१७०/तीर्थंकर चरित्र
पांचवां भव-मनुष्य
ब्रह्म देवलोक की आयु सम्पन्न कर महावीर का जीव कोल्लाक सन्निवेश में कौशिक नाम के ब्राह्मण रूप में मनुष्य जीवन को प्राप्त किया। जीवन के संध्या काल में वह त्रिदंडी तापस बना। उसका आयुमान ८० लाख पूर्व का था। इस भव के बाद अनेक छोटे भव किये जो २७ भवों की गिनती में नहीं लिये गये हैं। छठा भव-मनुष्य
थुना नगरी में पुष्यमित्र नाम का ब्राह्मण हुआ। आयुमान ७२ लाख पूर्व का था। कुछ काल तक गृहस्थाश्रम में रहकर परिव्राजक बना। सातवां भव-स्वर्ग
सौधर्म (प्रथम) देवलोक में देव बना। आठवां भव- मनुष्य
देवाय भोगकर नयसार का जीव चैत्य सन्निवेश में अग्निहोत्र ब्राह्मण हुआ। अग्निहोत्र अंत में परिव्राजक बना। इसकी सर्वायु ६४ लाख पूर्व थी। नौवां भव-स्वर्ग
ईशान (दूसरा) देवलोक में मध्यम स्थिति वाला देव बना। दसवां भव-मनुष्य
नयसार का जीव मंदिर सन्निवेश में अग्निभूति ब्राह्मण हुआ। आखिर में उसने परिव्राजक दीक्षा स्वीकार की। इसका आयुमान ५६ लाख पूर्व था। ग्यारहवां भव-स्वर्ग __ सनत्कुमार (तीसरा) देवलोक में देव बना। बारहवां भव-मनुष्य
देवायु भोगकर श्वेताबिका नगरी में भारद्वाज नाम का ब्राह्मण हुआ। भारद्वाज ने परिव्राजक दीक्षा ली। इसकी संपूर्ण आयु ४४ लाख पूर्व थी। तेरहवां भव-स्वर्ग
माहेन्द्र (चौथे) देवलोक में देव बने । यहां से च्यवकर अनेक छोटे भव भी किये। चौदहवां भव-मनुष्य
राजगृह नगर में स्थावर नाम का ब्राह्मण हुआ। अंत में परिव्राजक बना । इसका आयुष्य ३४ लाख पूर्व था। पन्द्रहवां भव-स्वर्ग
ब्रह्म (पांचवें) देवलोक में देव बने।