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भगवान् श्री पार्श्वनाथ/१६१
उन्हीं के दर्शनार्थ जा रहे हैं। कुतूहलवश पार्श्वकुमार भी वहां गये । अग्नि ज्वाला आकाश को छू रही थी, बड़े-बड़े लक्कड़ जल रहे थे। पार्श्व ने अवधिज्ञान से जलते हुए लकड़ों में एक नाग-दम्पती को देखा। उन्होंने तत्काल तपस्वी से कहाधर्म तो अहिंसा में है, अहिंसा विहीन धर्म कैसा ? तुम जो पंचाग्नि तप रहे हो इसमें तो एक नाग और नागिनी जल रहे हैं। तपस्वी के प्रतिकार करने पर पार्श्व ने लक्कड़ को चिरवाया। उसमें से जलते हुए नाग दम्पती बाहर आकर तड़फड़ाने लगे। पार्श्व ने उन्हें नमस्कार महामंत्र सुनवाया तथा तपस्वी पर क्रोध नहीं करने की सलाह दी। उसी समय दोनों के प्राण छूट गये। मरकर वे नागकुमार देवों के इन्द्र व इन्द्राणी- धरणेन्द्र व पद्मावती के नाम से उत्पन्न हुए।
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तापस का प्रभाव घट गया। चारों ओर उसका तिरस्कार होने लगा। उसने क्रुद्ध होकर अनशन कर लिया। मरकर वह मेघमाली देवता बना। दीक्षा ___ भोगावली कर्मों के परिपाक की परिसमाप्ति पर भगवान् पार्श्व दीक्षा के लिये उद्यत बने । लोकांतिक देवों ने आकर उनसे जन-कल्याण के लिए निवेदन किया। वर्षीदान देकर पौष कृष्णा एकादशी के दिन भगवान् ने सौ व्यक्तियों के साथ