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१४४ / तीर्थंकर चरित्र
सभी साध्वियां बिखर गई। साध्वी राजीमती भी अकेली रह गई। वर्षा से उनके कपड़े भीग गये थे। पास ही में गुफा थी। भीतर अंधेरा था । उन्हें अन्दर कोई भी दिखाई नहीं दिया। उन्होंने अपने कपड़ों को निचोड़ कर सुखाने के लिए फैला दिया ।
आकाश में बिजलियां चमक रही थी । गुफा में रथनेमि ठहरे हुए थे। उस बिजली के प्रकाश में राजीमती को पूर्ण अनावृत्त अवस्था में देखा तो उसकी सोई वासना जाग उठी। वे तुरंत राजीमती के पास आये और भोग की प्रार्थना करने लगे। राजीमती निर्भय होकर कपड़ों से पुनः आवृत्त हुई और रथनेमि को विभिन्न हितकारी वचनों से समझाया। उनकी सुभाषित वाणी को सुनकर रथनेमि पुनः संयम में स्थिर हो गये । भगवान् के चरणों में पहुंचकर रथनेमि ने प्रायश्चित्त किया और सिद्ध, बुद्ध व मुक्त बने । साध्वी राजीमती ने भी भगवान् के समवसरण में पहुंच कर वंदन किया और तप, जप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए मुक्ति श्री का वरण किया।
देवकी का छह पुत्रों से मिलन
चतुर्विध धर्मसंघ की स्थापना के बाद विचरते - विचरते भगवान् अरिष्टनेमि भद्दिलपुर नगरी पधारे। भगवान् की अमृतमयी देशना से विरक्त होकर देवकी के छह पुत्रों अनीकसेन, अजितसेन, अनिहत रिपु, देवसेन, शत्रुसेन और सारण ने दीक्षा ले ली। ये सुलसा गाथापत्नी के यहां बड़े लाड़ प्यार से पाले गये थे । भगवान् के साथ विचरते हुए द्वारिका पहुंचे। समवसरण जुड़ा, देशना हुई और लोग अपने-अपने घरों में गये। छहों मुनि बेले का पारणा लाने के लिये भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर द्वारिका नगरी में दो-दो के सिंघाड़े में भिक्षा प्राप्त करने लगे। पहला सिंघाड़ा गोचरी करते हुए देवकी के प्रासाद में आया । देवकी ने भावपूर्वक मुनि युगल को शुद्ध भोजन प्रदान किया। देवकी विस्मित नेत्रों से मुनि के तेजस्वी शरीर को देखकर सोचने लगी- कितने सुंदर, लावण्य युक्त, अच्छे संस्थान वाले व पूर्ण युवा हैं। इनके भी कृष्ण के समान श्रीवत्स चिन्ह है । धन्य है इनकी मां जिनके ये लाल हैं। देवकी यह सोच ही रही थी। इतने में दूसरा मुनि संघाटक आया और देवकी से भिक्षा प्राप्त कर चला गया। उसके बाद तीसरा युगल भी वहां आ पहुंचा। देवकी ने उन्हें भी भक्तिपूर्वक दान प्रदान किया। तीसरा मुनियुगल भिक्षा लेकर चला गया । देवकी सोचने लगी- क्या द्वारिका नगरी में अन्यत्र कहीं भी भोजन उपलब्ध नहीं हुआ ? तब ही मेरे घर पर मुनि तीन बार भिक्षा के लिए पधारे हैं। सचमुच द्वारिका में मुनियों को आहार नहीं मिल रहा होगा ! प्रभु से पूछ कर निर्णय करूंगी।'
देवकी ने प्रभु के पास आकर पूछा- 'प्रभो ! मेरा तो अहोभाग्य है कि आज