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१२६/तीर्थंकर चरित्र
दीक्षा __ गृहस्थोपभोग्य कर्मों के क्षय होने से उन्होंने अपने उत्तराधिकारी को राज्य देकर वर्षीदान दिया। फाल्गुन शुक्ला १२ (अन्य मतानुसार फाल्गुन कृष्णा ८) के दिन एक हजार विरक्त भव्यात्माओं के साथ संयम ग्रहण किया। उनके दीक्षा समारोह पर मनुष्यों के साथ देवों की भी अपार भीड़ थी।
साढ़े ग्यारह मास तक उन्होंने छद्मस्थ अवस्था में चारित्र का पालन किया। विचरते-विचरते पुनः राजगृह के उद्यान में पधारे। वहीं पर चम्पक वृक्ष के नीचे उन्होंने ध्यान में सर्वज्ञता प्राप्त की।
देव निर्मित समवसरण में प्रथम प्रवचन किया। तीर्थ स्थापना के साथ बड़ी संख्या में साधु, साध्वी, श्रावक तथा श्राविकाएं हो गई। समग्र जनपद में धर्म की लहर दौड़ गई। निर्वाण __ निर्वाण वेला को निकट देखकर भगवान् ने एक हजार चरम शरीर व्यक्तियों के साथ एक मास का अन्तिम अनशन किया। सम्मेद-शिखर पर भव विपाकी कर्मों को क्षय करके उन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया। चौसठ इंद्रों ने मिलकर भगवान् के शरीर की निहरण क्रिया की।
आठवें बलदेव राम व वासुदेव लक्ष्मण भगवान् मुनि सुव्रत के शासनकाल में हुए। इनका विस्तृत वर्णन पउमचरियं एवं पद्म पुराण में उपलब्ध है। राम का अपर नाम पद्म भी था। प्रभु का परिवार
० गणधर ० केवलज्ञानी
१८०० ० मनः पर्यवज्ञानी
१५०० ० अवधिज्ञानी
१८०० ० वैक्रिय लब्धिधारी
२००० ० चतुर्दश पूर्वी
५०० ० चर्चावादी
१२०० ० साधु
३०,००० ० साध्वी
५०,००० ० श्रावक
१,७२,००० ० श्राविका
३,५०,०००
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