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भगवान् श्री कुंथुनाथ/११३
राजा सूरसेन ने बालक का जन्मोत्सव विशाल स्तर पर मनाया। पुत्र-जन्म की खुशी का लाभ सबको मिले, इस दृष्टि से राजा ने बन्दीगृहों के बन्दियों को मुक्त कर दिया । याचकों को मुक्त हस्त से दान दिया। उत्सवकाल में आयात-निर्यात की पाबन्दी व कर समाप्त कर दिये। सर्वत्र एक ही चर्चा थी- पुत्र क्या जन्मा, निहाल कर दिया!
नामकरण के दिन पारिवारिक जनों के बीच पुत्र को लेकर महारानी स्वयं आई । कुन्थु-रत्न की भांति पुत्र के तेजस्वी शरीर को सभी ने देखा, आशीर्वाद दिया। नाम के बारे में राजा सूरसेन ने कहा- 'यह बालक जब गर्भ में था तब महारानी ने स्वप्न में कुन्थु नामक रत्नों की राशि देखी थी, अतः बालक का नाम कुन्थु कुमार रखा जाए। सभी ने बालक को इसी नाम से पुकारा।
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विवाह और राज्य ___कुंथुकुमार ने जब तारुण्य को प्राप्त किया तब राजा सूरसेन ने सुलक्षणवती अनेक राजकन्याओं के साथ उनका विवाह किया तथा आग्रहपूर्वक उनका राज्याभिषेक कर दिया। राजा स्वयं निवृत्त होकर मुनि बन गये। __ कुंथुनाथ अपने राज्य को व्यवस्थित चला रहे थे। एक बार आयुधशाला के संरक्षक ने आकर सूचना दी- आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ है। कुंथुनाथ