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भगवान् श्री धर्मनाथ / १०३
चौथे चक्रवर्ती सनत्कुमार भी उनके शासनकाल में हुए थे । हस्तिनापुर के राजा अश्वसेन उनके पिता थे। माता का नाम महारानी सहदेवी थी। बचपन में ही वे विभिन्न कलाओं में निपुण थे। फिर भी उपाध्याय की साक्षी से बहत्तर लौकिक कलाओं का ज्ञान किया ।
एक बार राजा के यहां एक अश्व व्यापारी प्रशिक्षित घोड़े लेकर आया। युवराज सनत्कुमार एक अश्व पर बैठकर अश्व- परीक्षा के लिए घूमने गये । ज्योंही घोड़ा शहर से बाहर निकला कि हवा-वेग से दौड़ने लगा और कुछ ही क्षणों में राजकुमार सहित अदृश्य हो गया। राजा अश्वसेन अत्यधिक चिन्तित होकर कुमार की खोज करने लगे। जंगल में अंधड़ के कारण अश्व के पद चिन्ह भी लुप्त हो गये थे ।
सनत्कुमार के मित्र महेन्द्रसिंह ने राजा अश्वसेन को ज्यों-त्यों समझाकर वापिस भेजा तथा स्वयं कुमार को खोज निकालने की प्रतिज्ञा करके आगे बढ़ा। कई प्रदेशो में घूमता हुआ वह काफी आगे तक निकल गया, पर कुंवर का कोई पता नहीं लग सका। फिरते-फिरते एक वर्ष बीत गया। एक बार महेन्द्रसिंह अपने मित्र को खोजता हुआ एक घने जंगल में जा रहा था। सहसा उसके कानों में हंस, मयूर, सारस आदि पक्षियों की मधुर आवाजें आने लगीं । महेन्द्रसिंह उधर ही चल पड़ा ।