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________________ ९०/तीर्थकर चरित्र दीक्षा निर्धारित तिथि फाल्गुन कृष्णा अमावस्या के दिन छह सौ व्यक्तियों के साथ वासुपूज्य कुमार ने अभिनिष्क्रमण किया। दीक्षा के दिन उनके उपवास का तप था। दूसरे दिन निकटवर्ती शहर महापुर नगर के राजा सुनन्द के यहां भगवान् ने परमान्न (खीर) से पारणा किया और देवों ने पंच द्रव्य प्रकट करके दान का महत्त्व प्रदर्शित किया। ___भगवान् ने अपने छद्मस्थ काल के एक मास में उग्रतम अंतरंग साधना की। पवित्र जीवन तो उनका पहले से ही था, अब पूर्व संचित कर्मों को क्षय करने में भी उन्होंने विशेष सफलता प्राप्त की । गुणस्थानों के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने चार घातिक- कर्मों का क्षय किया और सर्वज्ञता प्राप्त की। देवेन्द्रों ने केवल- महोत्सव किया। इसके बाद प्रभु के प्रथम प्रवचन में ही चार तीर्थ की स्थापना हो गई। अनेकों व्यक्ति साधना पथ के पथिक बन गए। एक छत्र प्रभाव तीर्थंकरों के अतिशय भी अपूर्व होती हैं। उनका प्रभाव सब वर्गों पर एकछत्र रहता है। क्या अमीर, क्या गरीब सब पर उनका असर था। तत्कालीन मण्डलाधीश छत्रपति राजाओं पर भी उनका अद्भुत प्रभाव था। इस अवसर्पिणी : के दूसरे नारायण अर्धचक्री वासुदेव द्विपष्ठ भी प्रभु के परम भक्त थे। भगवान् वासुपूज्य जब अर्धचक्री की नगरी में पधारे, तब उन्होंने सूचना देने वाले को साढ़े बारह करोड़ सोनइयों (मुद्रा) का दान दिया और स्वयं राजकीय सवारी से भगवान् के दर्शन करने आये | धर्म की प्रभावना में उनका विशेष योगदान रहा। दूसरे बलदेव श्री विजय ने भी भगवान् के शासन में भागवती दीक्षा स्वीकार की। और भी अनेक राजागण प्रभु के चरणों में साधनालीन बन गये। निर्वाण __ अपना निर्वाण काल निकट देख कर भगवान् वासुपूज्य चम्पा नगरी पधारे। वहां छह सौ साधुओं के साथ अनशन ग्रहण किया। एक मास के अनशन से समस्त कर्मों के क्षय हो जाने पर उन्होंने आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी के दिन सिद्धत्व को प्राप्त किया। चौसठ इन्द्रों ने मिलकर निर्वाण महोत्सव किया, भगवान् के शरीर का नीहरण किया। प्रभु का परिवार ० गणधर ६६ ० केवलज्ञानी ६००० ० मनः पर्यवज्ञानी ६०००
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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