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________________ ८२/तीर्थकर चरित्र कृष्णा बारस के दिन प्रभु चन्द्रप्रभा नामक शिबिका (सुखपालिका) में बैठकर सहस्राम्र उद्यान में आये। पंचमुष्टि लोच किराए । सुरेन्द्रों और मनुष्यों की भारी भीड़ में सावद्य योगों का त्याग कर उन्होंने साधुत्व स्वीकार किया। दीक्षा के दूसरे दिन चौविहार बेले का पारणा उन्होंने निकटवर्ती नगर अरिष्टपुर के महाराजा पुनर्वसु के यहां खीर से किया। देवों ने भगवान् के प्रथम पारणे का उत्सव मनाया। __ निस्पृह वृत्ति से विहार करते हुए शीतलप्रभु अपनी चर्या को विशेष समुज्ज्वल बनाते रहे। तीन मास के बाद वे पुनः सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहीं पर आपको सर्वज्ञता प्राप्त हुई। केवल-महोत्सव के बाद देवों ने समवसरण की रचना की। भगवान् ने प्रथम प्रवचन में साधुत्व व श्रावकत्व के बारे में विस्तार से बतलाया और प्रेरणा दी। अनेक व्यक्तियों ने साधना-पथ को स्वीकार किया। निर्वाण ___ लाखों भव्यजनों का उद्धार करते हुए प्रभु ने जब आयुष्य कर्म स्वल्प देखा, तो एक हजार केवली मुनियों के साथ सम्मेद शिखर पर आजीवन अनशन व्रत स्वीकार कर लिया। भवोपग्राही अघातीकर्मो को क्षय कर, एक लाख पूर्व का आयुष्य-भोगकर उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। प्रभु का परिवार ० गणधर ० केवलज्ञानी ७००० ० मनः पर्यवज्ञानी ७५०० ० अवधिज्ञानी ७२०० ० वैक्रिय लब्धिधारी १२,००० ० चतुर्दश पूर्वी १४०० ० चर्चावादी ५८०० ० साधु १,००,००० ० साध्वी १,०६,००० ० श्रापक २,८९,,००० ० श्राविका ४,५८,००० एक झलक० माता नन्दादेवी ० पिता दृढ़रथ ० नगरी भद्दिलपुर ० वंश इक्ष्वाकु ० गोत्र काश्यप ८१
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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