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________________ अरिष्ट देखकर वैद्य को अपयश प्राप्त न हो इसके लिए 'प्रत्याख्याय' (रोगी अब नहीं बच सकेगा ऐसा कहकर) चिकित्सा करने का उपदेश शास्त्र में है। यह ग्रन्थ सिंघी जैन ग्रन्थ सीरिज' में मुनि जिन विजयजी ने प्रकाशित कराया है। दुर्गदेव की अन्य रचना 'अर्घकांड' है। इस में भावों के तेजी-मंदी का विज्ञान 149 गाथाओं में वर्णित हैं। महेन्द्र जैन (11वीं शती) यह कृष्ण वैद्य का पुत्र था। इसका नाम 'महेन्द्र भोगिक' मिलता है। यह थानेश्वर का निवासी था। रा. प्रा. वि. प्र. 'जोधपुर' ग्रंथांक 9510 'द्रव्यावलीसमुच्चय' में कर्ता का नाम 'महेन्द्र जैन' निर्दिष्ट है। इस हस्तप्रति का लेखनकाल वि. सं. 1709 (1652 ई ) है और रचनास्थान उदयपुर है । ___ महेन्द्र जैन द्वारा विरचित निघंटु ग्रंथ का नाम 'द्रव्यावली' या 'द्रव्यावलीसमुच्चय' है। आनंदाश्रम प्रेस पूना (1925) से प्रकाशित 'धन्वन्तरिनिघंटु' में 'द्रव्यावलि' भी समन्वित है। भांडारकर इंस्टीट्यूट पूना में द्रव्यावलि की 8 प्रतियां मौजूद हैं। ग्रन्थ का प्रथम भाग 'द्रव्यावलि' है। इसे 'द्रव्यगुणरत्नमालिका' भी कहा है। पूना की हस्तप्रति ग्रथांक 106 में ग्रन्थारंभ में 'पार्श्वनाथ' को नमस्कार किया गया है 'कृष्ण त्विरिष्टविदारकाय, तुभ्यं जगल्लोचनलोभनाय । श्रीपार्श्वनाथाय सनातनाय नमो नमस्तु पुरुषोत्तमाय ।।1।।' चिकित्सा हेतु कल्पयोगों के रूप में 7 सात वर्गों में द्रव्यों का समुच्चय किया गया है। 'अनंतपारस्य विगृह्य किं चित्सारं चिकित्सागमसागरस्य । उक्तो मया संप्रति कल्ययोगद्रव्यावली नाम समुच्चयोऽयम् ।।2।।' ये गण या वर्ग दोष-रोग-प्रभाव को ध्यान में रखकर उनको क्वाथादि कल्पनाओं के रूप में देने के लिए बताये गये हैं। इसमें नामपर्याय शैली से औषधिद्रव्यों का निर्देश है। इसके अन्त में लिखा है - 'योगानेतान्प्रयुञ्जान: पुरुषो नित्यमात्मवान् । आप्नुयादज्वरारोग्यं बलवर्णमतिस्विनः ।। इति 'द्रव्यगुणरत्नमालिका' समाप्ता।' इसमें 373 द्रव्यों का उल्लेख है 'शतत्रयं च द्रव्याणां त्रिसप्तत्यधिकोत्तरम् । हिताय वैद्यविदुषां 'द्रव्यावल्यां' प्रकाशितम् ॥' (उपक्रम 7/4)। आगे, द्वितीय भाग में गुणकर्मशैली से द्रव्यों का विवरण दिया है। इसमें द्रव्यों के नामों के साथ गुणकर्म भी बताये गए हैं। लिखा है [ 89 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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