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________________ आगमसाहित्य का संस्करण नागार्जुन ने जैन आगमों के श्रुतपाठों को एकत्रित करने और उनका परिकार करने के लिए वल्लभी में एक सम्मेलन आयोजित किया। इसमें सुदूरप्रांतों से अनेक जैन यति-मुनि सम्मिलित हुए थे। यह सम्मेलन 300 ई. के लगभग हुआ था। इस सम्मेलन द्वारा आगमों के जो पाठ संस्करण प्रस्तुत हुए उन्हें 'नागार्जुनो वाचना' या 'वल्लभी वाचना' कहते हैं । लगभग इसी समय में मथुरा में आचार्य स्कंदिल ने एक जैन सम्मेलन बुलाया था। इसमें भी आगमों का पाठ निर्धारण किया गया। इसे 'माथुरी वाचना' कहते हैं। दुर्भाग्य से अब जैन आगमों के 'वल्लभी' और 'माथुरी' वाचनाओं वाले पाठ अनुपलब्ध हैं । यत्र तत्र उनके उल्लेख मिलते हैं । रससिद्धि 'अलबेरुनी' ।। 1वींशती) ने अपने 'भारत वर्णन' में नागार्जुन के सम्बन्थ में लिखा है-'रसविद्या के नागार्जुन नामक प्रसिद्ध आचार्य हुए जो सौराष्ट्र में सोमनाथ पास के निकट देहक में रहते थे । वे रसविद्या में बहुत निपुण थे। उन्होंने इस विषय पर एक ग्रंथ लिखा था, जो अब दुर्लभ है । वे हमसे सौ साल पहले हो गये हैं।' अलबेरुनी के विवरण से नागार्जुन के विषय में निम्नतथ्य उभरकर सामने आते हैं-1. वह रसविद्या में निपुण था 2. उसका निवास स्थान सौराष्ट्र में सोमनाथ के दैहक नामक स्थान था, 3. रसविद्या पर उसने कोई ग्रंथ लिखा था और, 4. अलबेरुती से वह 100 वर्ष पहले हुआ था । स्थान, काल और कृतित्व के संबन्ध उसका यह वर्णन अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन परम्परा में भी नागार्जुन को रस-सिद्ध माना गया है । उसका निवास स्थान सौराष्ट्र में ढंकगिरि में बताया गया है, परन्तु अलबेरूनी सोमनाथ के निकट मानता है। उसके काल में सोमनाथ की ख्याति बहुत फैल चुकी थी। उसकी धन सम्पदा और *ख्याति से आकृष्ट होकर ही अलबेरूनी के समकालीन और आश्रयदाता गजनी के मुसलमान शासक महमूद ने सोमनाथ पर आक्रमण कर लूटमार की थी। सोमनाथ नाम से प्रायः सारे सौराष्ट्र की सूचना मिलती है। अत: अलबेरूनी द्वारा प्रसिद्ध स्थान सोमनाथ के निकट देहक को बताया गया है । 'दहक' और 'ढंक' शब्दों में काफी साम्य है । भारतीय शब्दों के अरबी या फारसी रूप बहुत बदले हुए मिलते हैं। यह बात सूचना देने, व्यक्ति के उच्चारण की स्थिति एवं सुनकर लिखने वाले लेखक के ग्रहण के आधार पर निर्धारित होती थी। अतः परिवर्तन संभव ही था। यह आज भी होता है। जैसे रसविद्या-निपुण नागार्जुन का अलबेरूनी ने उल्लेख किया है, वह जैन रससिद्ध नागार्जुन ही होना प्रमाणित होता है। अड़चन केवल काल संबंधी सूचना की है। अलबेरूनी ने नागार्जुन को अपने से सौ वर्ष पूर्व होना बताया है। यह भ्रांतिमूलक है। उस समय, भारतीय समाज में, विशेषकर सुदूर, पंजाब एवं पश्चिमोत्तर भारतीय प्रांतों में जहां अलबरूनी ने यात्रा की थी, नागार्जुन संबंधी एक मिलाजुला ऐतिहासिक [ 78 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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