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________________ इस प्रकार आचार्य उग्रादित्य का उत्तरकालीन जीवन दक्षिण के राष्ट्रकूटवंशीय सम्राट अमोघवर्ष प्रथम का समकालीन रहा। इस शासक का शासन काल 814 से 878 ई. रहा था। सम्राट अमोघवर्ष प्रथम को नृपतुग, महाराजशर्व, महाराजशण्ड, वीरनारायण, अतिशयधवल, शर्वधर्म, वल्लभराय, श्रीपृथ्वीवल्लभ, लक्ष्मीवल्लभ, महाराजाधिराज, भटार, परम भट्टारक आदि विरुद प्राप्त थे। यह गोविन्द तृतीय का पुत्र था। जिस समय सिंहासन पर बैठा, उस समय उसकी आयु 9-10 वर्ष की थी, अत: गुर्जरदेश का शासक, जो उसके चाचा इन्द्र का पुत्र था, कर्कराज उसका अभिभावक और संरक्षक बना । 82 1ई.में अमोघवर्ष के वयस्क होने पर कर्कराज ने विधिवत् राज्याभिषेक किया। अमोघवर्ष के पिता गोविन्द तृतीय ने एलोरा और मयूरखंडी से हटाकर राष्ट्रकूटों की नवीन राजधानी मान्यखेट नासिक के पास (मलखेड) में स्थापित की थी। परन्तु उसके काल में इसकी बाहरी प्राचीर मात्र निर्माण हो सकी। अमोघवर्ष ने अनेक सुन्दर व भव्य प्रासादों, सरोवरों और भवनों के निर्माण द्वारा उसका अलंकरण किया । अमोघवर्ष एक शांतिप्रिय और धर्मात्मा शासक था। युद्धों का संचालन प्रायः उसके सेनापनि और योद्धा ही करते रहे। अत. उसे वैभव, समृद्धि और शक्ति को बढ़ाने का खूब अवसर प्राप्त हुआ । "851 ई. में अरब सौदागर सुलेमान भारत आया था। उसने 'दीर्घायु बलहरा' (बल्लभराय) नाम से अमोघ का वर्णन किया है और लिखा है कि उस समय संसारभर में जो सर्वमहान् चार सम्राट थे, वे भारत का वल्लभ राय (अमोघवर्ष), चीन का सम्राट, बगदाद का खलीफ़ा और रूम कुस्तुन्तुनिया) का सम्राट थे।" वह स्वयं वीर, गुणी और विद्वान् होने के साथ उसने अनेक विद्वानों, कवियों और गुणियों को अपनी राजसभा में आश्रय प्रदान किया। इसके काल में संस्कृत, प्राकृत, कन्नड़ी और तमिल भाषाओं के विविध विषयों के साहित्य-सृजन में अपूर्व प्रोत्साहन मिला। सम्राट अमोघवर्ष दिगम्बर जैन धर्म का अनुयायी और आदर्श जैन श्रावक था । वीर सेन स्वामी के शिष्य आचार्य जिनसेन स्वामी का वह शिष्य था। जिनसेन स्वामी उसके राजगुरु और धर्मगुरु थे। जैसा कि गुणभद्राचार्यकृत 'उत्तरपुराण' (ई. 898) मे लिखा है 1 प्रो. सालेतोर. Mediaval Jainism, P. 38; पं. कैलाशचन्द्र, दक्षिण भारत में __ जैनधर्म, पृ 90 २ भारत के प्राचीन राजवंश, भाग 3, पृ. 38 3 डा. ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय इतिहास : एक दष्टि, पृ. 301 4 प्रो. सालेतोर, Mediaval Jainism, P. 38 [ 59 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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