________________
श्रीनन्दि को 'विष्णुराज' नामक राजा द्वारा विशेषरूप से सम्मान प्राप्त था । कल्याणकारक में लिखा है '-"महाराजा विष्णुराज के मुकुट की माला से जिनके चरणयुगल शोभित हैं अर्थात् जिनके चरण कमल में विष्णुराज नमस्कार करता है, जो सम्पूर्ण आगम के ज्ञाता हैं, प्रशंसनीय गुणों से युक्त हैं और उनसे ही मेरा उद्धार हुआ है।"
"उनकी आज्ञा से नाना प्रकार के औषध-दान की सिद्धि के लिए (अर्थात् चिकित्सा की सफलता के लिए) और सज्जन वैद्यों के वात्सल्य प्रदर्शन रूपी तप की पूर्ति के लिए, जिन-मत (जैनागम) से उद्धृत और लोक में 'कल्याणकारक' के नाम से प्रसिद्ध इस शास्त्र को मैंने बनाया।''
'विष्णुराज' के लिए यहां परमेश्वर' का विरुद लिखा गया है। यह परमश्रेष्ठ शासक का सूचक है। यह विष्णुराज ही, पूर्वी चालुक्य राजा कलि विष्णुवर्धन पंचम था, जो उग्रादित्य का समकालीन था, ऐसा नरसिंहाचार्य का मत उनके उपयुक्त उद्धरण से स्पष्ट होता है। परन्तु पूर्वी चालुक्य राजा कलि विष्णुवर्धन पंचम का शासनकाल ई. 847 से 848 तक ही रहा । एक वर्ष की अवधि में किसी राजा द्वारा महान् कार्य सम्पादन कर पाना प्रायः संभव ज्ञात नहीं होता।
श्री वर्धमान शास्त्री का अनुमान है—'यह विष्णुराज अमोघवर्ष के पिता गोविंदराज तृतीय का ही अपर नाम होना चाहिए। कारण महर्षि जिनसेन ने 'पार्वाभ्युदय' मे अमोघवर्ष का परमेश्वर की उपाधि से उल्लेख किया है। हो सकता है कि यह उपाधि राष्ट्रकूटों की परम्परागत हो"3
यह मत मान्य नहीं, केवल अनुमान पर आधारित है। क्योंकि पहले राष्ट्रकूटों का वेंगि पर अधिकार नहीं था। अमोघवर्ष प्रथम ने उस पर सबसे पहले अधिकार किया था।
यह विष्णुराज, जो वेंगि का शासक था, निश्चय ही कलि विष्णुवर्धन और अमोघवर्ष प्रथम से पूर्ववर्ती विष्णुवर्धन चतुर्थ नामक अत्यन्त प्रभावशाली और जैनमतानुयायी पूर्वी चालुक्य राजा था। इसका शासनकाल ई. 764 से 799 तक रहा ।
1 क. का., प. 25: श्लोक 51-52
"श्रीविष्णुराजपरमेश्वरमौलिमाला संलालितांघ्रियुगलः सकलागमज्ञः । पालापनीयगुणसोन्नत सन्मुनीन्द्रः श्रीनंदिनंदितगुरुगुरुरुजितोऽहम् ।। तस्याज्ञया विविधभेषजदानसिध्यै सवैद्यवत्सलतपः परिपूरणार्धम् । शास्त्रं कृतं जिनमतोद्धृतमेतदुघेत् कल्याणकारकमिति प्रथितं धरायाम् ।। 3 Narasinghacharya-Mysore Archaeological Report, 1922, Page 23 3 वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, कल्याणकारक, उपोद्घात, पृ, 42
[
55
]