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'द्वितीय खंड ज्वर की कथा, कही सुगम मति आन ।
समझ परै सब ग्रन्थ की, पढ़े सु पंडित जान ।।27।। (द्वि खं. के अन्त में) 'इति ख. 'मुनि मानजी विरचितायां ज्वर निदान, ज्वर चिकित्सा, सन्निपात तेरह चिकित्सा नाम द्वितीय खंड ।'
यह ग्रन्थ कवित्त, चौपाई, दोहा मादि छंदों में लिखा गया है। भाषा अत्यन्त सरल और सुगम है। रचना शैली सुन्दर है । (2) कविप्रमोद (1689 ई.)
यह मुनिमान का दूसरा वैद्यक ग्रंथ है। यह बहुत बड़ी कृति है (कुल पद्य 2944)। यह हिन्दी, राजस्थानी में कवित्त, चौपाई और दोहा छंदों में लिखा गया है ('कवित्त छंद दोहे सरस, तां महि कीने जोग' ग्रन्थांत, 96)। इसमें नौ उद्देश्य (अध्याय) हैं।
ग्रंथ का रचनाकाल संवत् 1746 (1689 ई.) कार्तिक शुक्ला 2 है
'संवत् 'सतर छयाल' शुभ, कातिक सुदि तिथि दोज । 'कविप्रमोद' रस नाम यह, सर्व ग्रंथनि कौं खोज ।।12।। (ग्रंथारम्भ)
कवियों की संस्कृत वाणी को सामान्य लोग नहीं समझ सकते। इसलिए सुगम भाषा में ललित वाणी में यह रचना कही गयी है
'संस्कृत वाणी कविनि की, मूढ़ न समझे कोई ।
तातै भाषा सुगम करि, रसना सुललित होइ ।।। 3॥' (ग्रन्थारम्भ) यह एक संग्रह ग्रन्थ है। वाग्भट, सुश्रुत, चरक, आत्रेय, खरनाद, भेड के ग्रंथों का सार लेकर इसका प्रणयन किया गया है।
'वाग्भट शुश्रत चरक मुनि, अरु निबंध आत्रेय ।
खारनाद अरु भेड़ ऋषि, रच्यो तहां सौ लेय । 92॥ (ग्रन्थांत) . इसकी हस्तलिखित प्रतियां नकोदर भंडार पंजाब, पाटण और बीकानेर में उपलब्ध हैं। __इन दोनों ग्रथों से मुनि मान की गंभीर विद्वता और आयुर्वेद के गहन अध्ययन व अनुभव का परिचय मिलता है।
विनयमेरुगरिण (17वीं शती का अंतिमचरण) यह खरतरगच्छीय जिन चन्दसूरि' शाखा में वाचक 'सुमतिसुमेरु' के भ्रातृ-पाठक थे। इनका काल 17वीं शती (वि. 18वीं शती) ज्ञात होता है। इनके शिष्य 'मुनिमान' ने हिन्दी, राजस्थानी में कविविनोद (सं. 1745) एवं कविप्रमोद (वि. 1746) नामक वैद्यक-ग्रन्थ लिखे हैं। यह बीकानेर क्षेत्र के निवासी थे।
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