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नरबुद ने अपने को 'कविराज' भी कहा है । कोकदेव द्वारा विरचित 'कोकशास्त्र' के आधार पर में लिखा गया है ।
यह ग्रन्थ कामशास्त्र विषयक है । लिखा गया है । यह चौपाई छंद
'कोक' तणो मद लेई करी, चाल चोपाई कवि उचरी । 'बुरहानपुर' नगरमा थई, नामे चोपाई ||86।।
इसमें 'दस' प्रकार (प्रकरण ) हैं । स्त्रियों के प्रति लुब्ध व्यक्तियों के लिए सुख
प्राप्ति हेतु यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी है
'दश प्रकार संपूरण हुआ, विगत करि कथा जूजूआ । श्रीमातंगी ने वरदान, करी चोपई अमृत समान |187|| जे नर स्त्रीआलुब्धा हस, तेह नामने ईणी ग्रंथ रसें । जिम कमल माहि भमर रमै, गंध केतकी छांडे कीमै ||83॥ 'कामशास्त्र' मति उत्तम ह, देई चित्तनें सुणसें जेह ।
अनंत सुख पामिसें सदा, 'श्रीमरबुद' कहे सुखसंपदा 11921
मोहनलाल दलीचंद देसाई ने 'जैन गुर्जर कविओं' में नरर्बुदाचार्य के दो ग्रन्थों का उल्लेख किया है -- कोकशास्त्र चतुष्पदी' और पंचाख्यानोद्धार कथा ।
कोकशास्त्रचतुष्पदी को 'कोककला चोपई' भी कहा गया है । उन्होंने लिखा है
'मातंगी मति आपीये, जिम कवित करु सुरसाल । 'कोककला' गुण वर्णत्रु, प्रीछे बाल गोपाल || || 'कोकशास्त्र कोके' कीयऊ, ते जाई सुविचन्न ।
कवि 'नरबद' ईम उचरई, बोलू कचित कथन्न ||6||
ग्रंथ के प्रारंभ में
देसाई ने सं. 1782 कार्तिक शुक्ल 10 की प्रति से उद्धरण दिये हैं । पुष्पिका देखिए - - इति श्रीमज्जिनाचार्यं 'श्रीनरबुदाचार्य' विरचिते 'कोकशास्त्र' दशम प्रकार संपूर्ण सं. 1792 वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे दशमी तिथी गुरुवासरे बडगाम मध्ये ।'
हर्षकीर्तिसूरि ( 1600 ई.)
यह तपागच्छ की नागपुरीय ( नागौरी) शाखा के आचार्य 'चन्द्रकीर्तिसूरि' के
1 जैन गुर्जर कविप्रो, भाग 1, पृ. 323-325, भाग 3, खंड 1, पृ. 8271
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इस कथा की स्वयं कवि के हाथ से संवत् 1660 शक बाचन हेतु लिखी हुई हस्तप्रति भांडारकर इंस्टीट्यूट
1525 में गरि भोजसागर के
पूना में सुरक्षित है ( प्रथांक
359, सन् 1871-2 ) 1
प्राचार्य प्रियव्रत शर्मा ने अपने विवरण में तीन मूलें की हैं- प्रथम, हर्षकीर्ति के गुरु
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