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मेरुतुंग (ई. 1386) यह जैन साधु थे। इन्होंने सन् 1386 में एक प्राचीन रसग्रन्थ 'कंकालय रसाध्याय' पर टीका लिखी है।
'कंकालयरसाध्याय' की रचना 'चंपक' नामक जैन विद्वान् ने की है, जो अंचलगच्छीय 'महेन्द्रप्रभ' का शिष्य था। यह ग्रंथ काशी संस्कृत सीरिज बनारस से छप चुका है।
संभवतः इस ग्रन्थ को गोंडल के इतिहास में 'रसायनप्रकरण' कहा गया है और इसका रचनाकाल सन् 1387 बताया गया है ।
__ रसविद्या पर निश्चित तिथि वाला यही ग्रन्थ है। 1386 में मेरुतुग ने टीका लिखी है । अत: मूलग्रन्थ का रचनाकाल इससे पूर्व का प्रमाणित होता है ।
_ मेस्तुग ने सं. 1409 (1352 ई.) में 'कामदेवचरित' और सं. 1413 (1356 ई.) में 'संभवनाथचरित' की रचना की है ।।
सिंह (1471 ई.) _ 'सिंह' रणथंभोर के शासक 'अलाउद्दीन खिलजी' द्वारा, वहां मुख्यसचिव (मंत्री) पद पर नियुक्त पोरवाड जातीय श्रेष्ठी 'धनराज' का पुत्र था । प्रसिद्ध मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी का शासनकाल 1296 से 1316 ई. है, अतः यह उसका समकालीन नहीं हो सकता। संभव है, मालवा के खिलजी वंश का यह कोई सुलतान हो, जो रणथंभोर में नियुक्त हो । सिंह द्वारा विरचित वैद्यकग्रंथ की हस्तप्रति के अन्तिम दो पत्र अगरचंद नाहटा को प्राप्त हुए थे। इनमें 1099 से 1123 तक श्लोक लिखे हैं। अन्तिम चार पद्यों में ग्रंथकार ने प्रशस्ति दी है। प्रशस्ति में इस वैद्यककृति का नाम 'निबन्ध' बताया गया है -
'यावन्मेरी कनकं तिष्ठतु तावन्निबन्धोऽयम् ।।1123।।
1 Catalogus Catalogorurm, Part 2, P. 15 is 'The Oldest and definitely datable work of this kind (on Rasash
astra) appears till now to be the commentary by Merutunga, a Jain, written in 1386 on Kankaliya Rasadhyaya which must naturally be older than the commentary
J. Jolly, Indian Medicine, P.5 मोहनलाल दलीचंद देसाई. जैन साहित्यनो इतिहास (प्र.सं., गुजराती), पृ. 438 देखें, जनसत्यप्रकाश, वर्ष 19, पृ. 11
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