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________________ सिंह, मृगेन्द्र, पंचास्य, हर्यक्ष, केसरी और हरि । 'सिंह' की गर्दन के बाल घने, सुनहरी होते हैं और गति बहुत तेज होती है । ‘मृगेन्द्र' की आंखें सुनहरी, मूछे बड़ी, शरीर पर कई तरह के चकत्ते होते हैं और गति धीमी-गंभीर होती है । 'पंचास्य' छलांग लगाकर चलता है, जीभ मुह से बाहर लटकती रहती है, बहुत निद्रालु होता है । 'हयक्ष' प्रायः पसीने से तर रहता है । 'केसरी' लालरंग और धारियों से युक्त रहता है । 'हार' शरीर में बहुत छोटा होता है। पशुओं के पालन और संरक्षण की विधि व उपाय भी वणित हैं। गाय की रक्षा से पुण्य होना बताया है। पक्षियों को चतुर और जगल व घर का शृगार बताया गया है। ये पशु व पक्षी मनुष्य के सहायक हैं । इनके द्वारा अंडों को फोडने के समय को ज्ञात करना अद्भुत है। __पक्षियों में हंस, चक्रवाक, सारस, गरुड़, कौआ, बगुला; तोता, मोर, कबूतर आदि के भेद व स्वरूप का सुन्दर वर्णन है । ऋषियों ने कहा है कि पक्षियों को प्रेम से नहीं पालने वाले व्यक्तियों को पृथ्वी पर नहीं रहना चाहिए । अपने विषय का यह बेजोड़ ग्रन्थ है । इसमें पशु-पक्षियों का वर्गीकरण, भेद, स्वभाव, खान-पान, विशेषताएं आदि विषयों पर सूक्ष्मता से विचार किया गया है । यह 1700 अनुष्टुप छदों में पूरा हुआ है । ऐसा वर्णन अन्यत्र देखने को नहीं मिलता । लेखक का इस वर्णन से इन पशुपक्षियों से निकट दीर्घकालीन सम्पर्क, निरीक्षण और सूझ-बूझ का परिचय मिलता है। पशु-पक्षियों के पालन के लाभ भी बताये गये हैं। चम्पक (13वीं शती) यह जैन विद्वान् था। इसके द्वारा विरचित 'रसाध्याय' नामक ग्रन्थ मिलता है।1 यह अचलगच्छीय गच्छनायक महेन्द्रप्रभसूरि का शिष्य था । ग्रन्थ के अन्त में अपना वंश-परिचय दिया है। इससे ज्ञात होता है कि 'यादववंश' के 'रावल मूजालदेव' का पुत्र ‘महिप' हुआ, उसका पुत्र ‘भादिग' नामक हुआ। उसके दो पुत्र 'चम्पक' और 'मनागजाकोकिल' हुए। चम्पक ने इस ग्रन्थ की रचना की । 'ख्यातस्तथा यादववंशरत्न-मूजालदेवाभिध राउलोऽभूत् । तदात्मजन्मा महिपाभिधानस्तस्यात्मजो भादिगनामधेयः ।। 79।। तदात्मजश्चम्पकनामधेयो रसज्ञगेयोज्ज्वलकान्तिकीतिः । परोपकारक रस: कलावान् ‘भनागजाकौकिल' यस्य बन्धू ।। 880। 1 'कंकालयरसाध्याग' पर मेरुतुग जनसाधु ने 1386 ई. में टीका लिखी है। (जौली, इण्डियन मेडिसिन, पृ. 5, एवं 13) [ 99 1
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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