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________________ तीसरा भाग पड़ा और वे सब शिथिलाचारी होगए । दुर्भिक्षकी परिस्थितिके कारण सबने दंड, तूंबा, पात्र और अर्द्ध सफेद वस्त्र धारण किया । (११) सारे संघको चला गया देख उज्जैनके गजा चन्द्र गुप्तको उनके वियोगका बड़ा दुःख हुमा । इससे उन्होंने दीक्षा लेली और भद्रबाहु आचार्यकी सेवामें रहे। (१२) आचार्य भद्रबाहुकी थोडी भायु रह गई थी इसलिए उन्होंने उज्जैनीमें एक बड़के पेड़के नीचे समाधि लेली और भूख प्यास मादिकी परीषह जीतकर स्वर्ग गमन किया। (१३) सुभिक्ष होनेपर उनके शिष्य विशाखाचार्य भादि कौटकर उज्जयिनी भाए। उस समय स्थूलाचार्यने माने साथियों को 'एकत्र करके कहा कि शिथिकाचार पर छोडदो पर अन्य साधुओंने उनके उपदेशको नहीं माना और क्रोधित हो उन्हें मार डाला। स्थूलाचार्य मरकर व्यंत देव हुए, उनके उपद्रव करने पर वे कुलदेव मानकर पूजे गए। इन शिथिलाचारियोंसे · मर्द्धफालक '-माधे वस्त्रवाले संप्रदायका जन्म हुआ। (१४) उज्जयिनीमें चंद्रकीर्ति गजा था। उसकी कन्या वल्लभीपुरके राजाको व्याही गई । चन्द्रलेखाने अर्द्धफालक साधुओं के पास विद्याध्ययन किया, इसलिये वह उनकी भक्त थी। एकवार उसने अपने पतिसे साधुओंको अपने यहां बुलाने के लिये कहा। राजाने बुलानेकी आज्ञा दे दी। वे भाए और उनका खूब धूमधामसे स्वागत किया गया । पर राजाको उनका वेष अच्छा न कगा। वे रहते तो थे नाम पर ऊपर वस्त्र रखते थे। रानीने
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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