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________________ तमिरा भाग पर भद्रबाहुने एक साथ चौदह गोलियां तले कार चढ़ादीं। सब बालक देखकर दंग रह गए। (३) चौथे श्रुतके वली श्री गोवर्द्धनाचार्य उसी समय गिर-- नारकी यात्राको जाते हुए वहां से निकले । उन्होंने भद्रबाहु के खेलकी चतुरताको देखकर निमित्त ज्ञानसे जान लिपा कि पांचवें श्रुतकेवली यही होंगे, वे भद्रबाहुको साथ लेकर उनके घर गए और सोमशर्मासे उन्होंने भद्रबाहुको पढ़ानेके लिए मांगा । भाचार्यने भद्रबाहुको खूब पढ़ाया। वे वहुत शीघ्र सब विषयों के पूर्ण विद्वान होगए तब उन्होंने उसे वापिस घर लौटा दिया । (४) भद्रबाहु घर गए परन्तु उनका मन घ में नहीं लगता था। उन्होंने माता पितासे अपने साधु होने की प्रार्थना की। माता पिताको इससे बड़ा दुःख हुमा । भद्रबाहुने उन्हें समझा बुझाकर शान्त किया और सब मोह माया छोड़कर गोवर्द्धनाचार्य से दीक्षा लेकर वे योगी होगए। (५) गुरु गोवर्द्धनाचार्यकी कृपासे भद्रबाहु चौदह महापूर्वके विद्वान् होगए । जब संघाधीश गोवर्द्धनाचार्य का स्वर्गवास होगया तब उनके बाद उनके पदपर भवाहु श्रुतकेवली बैठे। (६) भाचार्य भद्रबाहु अपने संबको साथ लेकर भनेक . देशों और नगरोंमें अपने उपदेशका पान कराते उज्जैनकी ओर आये और सारे संघको एक पवित्र स्थानमें ठहरसकर मार माहारके लिये बहरमें गये। (७) जिस घरमें इन्होंने पहले ही पांच दिया, वहां एक..
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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