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________________ तीमग भाग की। और इन्द्रादि देवोंने दीक्षा कल्याणकका महोत्सव किया। (८) पार्श्वनाथ भगवानने विमला नामकी पालकीमें बैठकर मश्ववन में जाकर पौष कृष्ण एकादशीको तीनसौ राजाओं के साथ दीक्षा धारण की । उसी समय मापको मनःपर्यय ज्ञानकी उत्पत्ति हुई। तीन दिनका उपवास कर गुल्मसेटपुरके राजा धन्यके यहाँ माहार लिया । इन्द्रादि देवोंने राजाके यहाँ पंचाश्चर्य किये । चार माह तक आप दूमस्थ अवस्थामें रहे। (९) एक समय सात दिनका योग धारण कर वे उसी वनमें देवदारुके वृक्ष के नीचे धर्मध्यानमें लग रहे थे। इसी समय वह महाबल तपस्वी जो खोटे तपसे मरकर संवर नामक ज्योतिषी देव हुमा था, आकाश मार्गसे जा रहा था, परन्तु भगवानके ऊपरसे जानेके कारण उसका विमान रुक गया । तब उसने विभंगावधिसे पार्श्वनाथजीको जानकर पहले भवके वैरका संस्कार होने के कारण वह बड़ा क्रोधित हुमा । उस दुर्बुद्धिने बड़ा मयंकर शब्द किया और घनघोर वर्षा की । वह सात दिन महा गर्जना और महा वर्षा करता रहा। इसके सिवाय उसने पत्थरोंकी वर्षा भादि अनेक तरहके महोपसर्ग किए। भवधिज्ञानसे उस उपसर्गको जानकर उसी समय पद्मावती के साथ धरणेन्द्र भाया और देदीप्यमान रत्नोंके फणामंडपसे उसने चारों ओरसे ढककर भगवानको ऊपर उठा लिया तथा उसकी देवी पद्मावती अपने फणाओं के समूहका वज्रमयी छत्र बनाकर बहुत ऊंचा उठाकर खड़ी रही।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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