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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ३६ पाठ १०। पितृभक्त भीष्मपितामह। (१) कुरुजांगल देशके राजा शान्तनु तथा रानी गंगाके गर्भसे देवव्रतका जन्म हुमा था। भाप बड़े बलवान, साहसी, दृढ़ पतिज्ञ और पितृभक्त थे। (२) एक समय राजा शान्तनु गंगानदीके किनारे क्रीड़ाके लिए जा रहे थे, वहां उन्होंने धीवरराजकी कन्या सत्यवतीको देखा। सत्यवती बड़ी ही सुन्दर और आकर्षक थी। उसे देखकर राजा उसपर मोहित होगए। वे अपने मंत्रीके साथ धीवरराजके यहां गए। वहां राजाके मंत्रीने धीवरराजसे अपनी कन्याका विवाह महाराज शान्तनुसे कर देनेको कहा । धीवराजने अपनी कन्या देनेसे इन्कार किया। उसने कहा कि आपके पहली रानीसे एक महाप्रतापी पुत्र है, वह राज्यका स्वामी होगा। और मेरी कन्याके जो पुत्र होगा वह उसका दास बनकर रहेगा। इसलिए मैं अपनी कन्या नहीं दे सक्ता। राजा वापिस चले आए, परन्तु सत्यवतीके न मिलनेसे उनको बड़ी वेदना हुई। (३) पिताकी वेदनाका हाल देवव्रतको मालूम हुआ। वे धीवररानके यहां गए और पिताजीको अपनी कन्या देदेनेका आग्रह किया। परन्तु धीवररानने कहा कि आपके होते हुए मैं अपनी कन्या नहीं देसक्ता।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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