SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन इतिहास । १२६ ४. रूघीयत्रयी-प्रमाचंद्रका 'न्यायकुमुद चन्द्रोदय ' इसी अंथका भाष्य है। ५. बृहत्त्रयी-वृद्धत्रयी भी शायद इसीका नाम है। ६. न्यायचूलिका-ग्रंथ भी माल देवका रच। हुमा है। ७. अकलकस्तोत्र-या मालकाष्टक एक श्रेष्ठ स्तुतिग्रंथ है । (११) भकलङ्कदेवके महान् मध्यवप्तायसे उस समय दक्षिणभारत जैन विद्वानोंकी विद्वत् प्रभासे चमत्कृत होरहा था। स्वयं अकलङ्क क्षेत्र ही कितने ही सप्रतिम शिष्य थे। श्री माणिक्यनन्दि, विद्यानंद. पुष्पपेण, वीरसेन, प्रमाचंद्र, कुमारसेन और वादीमसिंह भाचार्य उनमें उल्लेखनीय हैं । किंतु इन सबमें वृद्धत्वका मान भकल करेवको ही प्राप्त है ! (१२) मकर देवने साहसतुङ्ग राजाकी राजसभाको सुशोभित किया था, जिसका संवत् ८१० से ८३२ तक राज्य करने का उक्केख मिलता है। अतः यह कहा जासक्ता है कि अकरदेव ८१० से ८३२ तक किसी समय में जीवित थे और उनका मस्तिस्वकाल विक्रमकी नवीं शताब्दिका प्रारम्भिक समय है।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy