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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ११८ भाचार्य प्रवर मजितसेन, श्री नेमिचंद्रजी सिद्धांतचक्रवर्ती, माधवचंद्र त्रैवेद्य प्रभृति रद्भट विद्वानोंने अपनी अमूल्य रचनामोंसे इन भाषा ओंके साहित्यको उन्नत बनाया था। इस साहित्योन्नतिसे भी चामुण्डरायके सर्वोग पूर्ण राजतंत्र व्यवस्थाका समर्थन होता है । (१९) श्री नेमिचन्द्राचार्य से उनका घनिष्ट सम्बन्ध था, यह पहले ही बताया जाचुका है। सचमुच जिस प्रकार गजप्रबंध और देशक्षा कार्यमें चामुण्डराय प्रसिद्ध थे, उसी प्रकार श्री नेमिचन्द्रचार्य धर्मोन्नति और शासक रक्षाके कार्यमें अद्वितीय थे । उस समय वह जैन धर्मके स्तंभ थे ! जैनदर्शनका मर्मज्ञ उनसा और कोई नहीं था। विद्वानोंने उन्हें । सिद्धांतचक्रवर्ती' स्वीकार किया था। उनकी कीर्तिगरिमाके सम्बन्धमें कविका निम्न पद्य दृष्टव्य है"सिद्धांताम्भोधिचन्द्रः प्रणुतपरमदेशीगणाम्भोधिचन्द्रः। स्याद्वादाम्भोधिचन्द्रः प्रकटितनयनिक्षेपवाराशिचन्द्रः ।। एनश्चक्रोधचन्द्रः पदनुतकमलवातचन्द्रः प्रशस्तो। जीयाज्ज्ञानाब्धिचन्द्रो मुनिपकुलवियच्चन्द्रमा नेमिचन्द्रः॥" (२०) सच पूछिये तो भारतीय इतिहास इन दोनों नर-रत्नोंके प्रकाशसे प्रदीप्त होरहा है। भारतीय साधु सम्प्रदायमें श्री नेमिचन्द्रजीका नाम प्रमुख पंक्ति में स्थान पाने के योग्य है और चामुंडराय ? वह तो भारतीय वीरोंमें अग्रणी और श्रावक संघके मुकुट हैं। उनके जनहितके कार्य और सम्यग्दर्शनकी निर्मलता उन्हें ठीक ही 'सम्यक्त रत्नाकर' प्रगट करती है। वह एक ऊंचे दर्जेके धर्मात्मा, महान योद्धा, प्रतिभाशाली कवि, परमोदार दातार मौर सत्य युधिष्ठर थे
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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