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________________ प्राचीन जैन इतिहाम। ११२ (९) भाचार्य महाराजने शुभ तिथि और वारको उसका प्रतिष्ठा- अनुष्ठान महोत्सव करानेका मादेश किया। श्री. अजित सेनाचार्य प्रतिष्ठा कार्यको सम्पन्न करनेको बुलाये गये। बड़ा भारी धर्मोत्सव हुमा । चामुण्डरायने माने जीवनको सफल बना लिया। यह चैत्र शुक्ल पंचमी इतवार ता०१३ मार्च सन् ९८१ ई०की सुखद घटना है। इसी रोज श्रवणबेलगोलकी लगभग ५८ फीट ऊंची विशाळ काय गोम्मट मूर्तिका उद्घाटन हुमा था; जो आज भी संसारमें चामुण्डरायके अमर नामकी कीर्ति फैला रही है और संपारकी अदभूत वस्तुओंमें एक है। (१०) श्री गोम्मटेश्वरकी मूर्तिस्थापनाके कारण चामुण्डराय 'राय' नामसे प्रसिद्ध हुये और उन्होंने श्री नेमिचन्द्राचार्यजीकी पाद पूजा करके इस मूर्तिकी रक्षा और पूजाके लिये कई गांव उनकी भेट कर दिये । सचमुच चामुण्डरायकी यह मूर्तिस्थापना बड़े महत्त्वकी है। जैनधर्म विश्वकी सम्पत्ति है। जिनदेवका अवतरण प्राणीमात्रके हितके लिये होता है। उनकी पूजा अर्चना करने का अधिकार जीवमात्रको है। श्री चामुण्डराय इन बातों को अच्छी तरह जानते थे। उनकी यह मूर्तिस्थापना जैनधर्म के इस विशाल रूपको स्पष्ट प्रगट कर रही है। आज श्रवणबेलगोलके पवित्र जिनमंदिरोंके और खास कर गोम्मटेश्वरके दर्शन करने के लिए जैनी अनैनी, मारतवासी और विदेशी सब ही माते हैं और दर्शन करके अपनेको कृतकृत्य हुमा समझते हैं । वास्तवमें पुनीत धर्म-मावके साथ श्रवणबेलगोलके पुरातत्वकी शिरुषकका भी एक वर्शनी वस्तु है। यह सोने सुगंधि
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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