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दूसरा भाग।
नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । और अपने पिताके पश्चात् राज्यका स्वामी हुआ। इसकी रानीका नाम सुप्रभा था। इसी राक्षस नामक राजाके नामसे उसकी सन्तान राक्षसवंशी कहलाने लगी। इस वंशमें इस प्रकार प्रसिद्ध पुरुष हुए हैं-आदित्यगति, बृहत्कीर्ति ये दोनों राजा राक्षसके पुत्र थे । इनमेंसे पहिला राजा था और दूसरा युवराज । दोनोंकी स्त्रियोंके नाम क्रमशः सदनपद्मा और पुष्पनखा था। आदित्यगतिका पुत्र भिम-प्रभ हुआ। इसके १००० रानियाँ थीं और १०८, पुत्र जो बड़े बलवान थे। उन्हें पुराणकारोंने पृथ्वीके स्तम्भकी उपमा दी है। इन राजाओंके पश्चात इस प्रकार राजाओंके नाम पुराणों में और मिलते हैं-पूनाई, जित-भास्कर, सम्पद-कीर्ति, सुग्रीव, हरिग्रीव, श्रीग्रीव, सुमुख, सुचन्द्र, अमृतवेग, भानुगत, द्विचिन्तगत, इन्द्र, इन्द्रप्रमु, मेघ, मृगीदमन; पवि, इन्द्रजित, भानुवर्मा, भानु, मुरारि, त्रिजित, भीम, मोहन, उद्धारक, रवि, चाकार, वजमध्य, प्रमोद, सिंह, विक्रम, चामुण्ड, मारण, भीष्म, द्रुपवाह, अरिमर्दन, निर्वा
भक्ति, उग्रश्री, अर्हद्भक्त, अनुत्तर, गतभ्रम, अनि, चण्ड, लङ्क, मयूरवाहन, महाबाहु, मनोज्ञ, भास्करप्रभ, बृहद्गति, बृहदाङ्कत, अरिसन्त्रास, चन्द्रावर्त, महारव, मेघध्वान, ग्रहक्षोभ, नक्षत्रदमन, इत्यादि । इन सबोंकी बाबत पूराणकार कहते हैं कि ये बड़े बली थे, क्रान्तिवान थे, धर्मात्मा थे । और इनकी राजधानी लंका थी। नक्षत्रदमनकी कितनी ही पीढियों बाद महारान धनप्रभ-जिनकी रानीका नाम पद्मा था-का पुत्र कीर्तिधवल हुआ। यह कीर्तिधवक बहुत ही प्रसिद्ध और बलवान राजा हुआ था।