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प्राचीन जैन इतिहाम। ३१
(४) इन्द्रपुरके राना उपेन्द्रसेनने अपनी कन्या पद्मावतीका विवाह नारायण पुंडरीकके साथ किया था ।
(५) प्रतिनारायण-निशुंभने तीन खंड पृथ्वी वश की थी। यह पुंडरीक और पद्मावतीके विवाहसे असंतुष्ट हुआ और नारायण बलदेवसे लड़नेको आया।
(६) युद्ध में जब निशुंभने पार नहिं पाया तब नारायण पर चक्र चलाया, वह भी नारायणके दाहिने हाथमें ठहर गया फिर नारायणके चलाने पर उसी चक्रसे निशुंभ मारा गया और मरकर नरक गया।
(७) नारायण पुंडरीक तीन खंडके स्वामी हुए। और अर्द्ध चक्री कहलाये । ये सोलह हजार रानियोंके स्वामी थे। तीन खंड पृथ्वीके अधिपति हुए । इनके यहां सात रत्न उत्पन्न हुए थे। इनके बड़े भाई बलदेवको चार रत्न प्राप्त थे ।
(८) नारायण अपनी आयु भोगविलाप्तोंमें ही व्यतीत कर नरक गये और बलदेव-नंदिषेणने दिक्षा ली और तप कर आठों कर्मोंका नाश किया और मोक्ष पधारे।