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प्राचीन जैन इतिहास। २९ रसोईयाका रूप धारण कर अपना वैर प्रगट किया और उसका बदला चुकानेके लिये चक्रवर्तिके जिहाजको समुद्रमें डुबा दिया । चक्रवर्तिका अंत हुआ और वह मर कर नरक गया ।
(१०) चक्रवर्ति सुभौमकी आयु साठ हजार वर्षकी थी और शरीर सुवर्णके रंगके समान था व शरीरकी ऊंचाई अठावीस धनुषकी थी।
(नोट) पद्मपुराणकारने सुभूमिके पिताका नाम कार्तिवीर्य और माताका नाम तारा लिखा है । व लिखा है कि सुभौम अतिथि बनकर परशुरामके यहां भोजनको गया तब परशुरामने दात पात्रमें रख बताये सो दात चावल होगये और पात्र चक्र हुआ । इस चक्रसे सुपौमने परशुरामको मारा । और पृथ्वीको ब्राह्मणवर्णसे निःशेष की । हरिवंशपुराणमें भी सुभौम चक्रवर्तिके पिताका नाम कार्तिवीर्य और माताका नाम तारा लिखा है । और तापसीका नाम कौशिक है । हरिवंश पुराणमें यह उल्लेख नहीं है कि वह तापस सुभौमकी माताका भाई था । और न सिद्धार्थ मुनिका ही कुछ उल्लेख है। महापुराणकारने बन देवताकी संरक्षणतामें इनका पालन होना लिखा है पर हरिवंशपुराणमें लिखा है कि ये कौशिक नामा तापसीके माश्रममें ही गुप्तरीतिसे पले थे । हरिवंशपुराणकारने भी इन्हें परशुरामके यहां निमंत्रित होकर जानेका कोई उल्लेख नहीं किया है किंतु यह लिखा है कि इनके भावी श्वसुर अरिजयपुरके विद्याधर राजा मेघनाथको निमित्तज्ञानी और केवलीकेद्वारा जब यह विदित हुआ कि उसकी पुत्री पद्मश्री चक्रवर्ति सुभौमकी पट्टरानी होगी और