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दूसरा भाग ।
तब वह कहने लगा कि तापसी साधु होना कम फल देनेवाला क्यों है ? ऐसी तापसियोंके तपमें क्या अशुद्धता है ? तब सौधर्म देवने कहा कि इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तुम्हे मैं पृथ्वीपर बतलाऊंगा ऐसा कहकर दोनोंने चकवाचकवीका रूप धारण किया । और ऊपर जिस जमदाग्नि तापसीका वर्णन दिया गया है उसके समीप आकर परस्पर बातें करने लगे । चकबाने कहा कि चकवी तुम यहाँ ठहरना, मैं अभी आता हूँ । इस पर चकवीने शपथ खानेका to किया । और कहा कि तुम शपथ लो कि यदि मैं न आऊँ तो " जमदग्निके समान तापसी होऊँ " चकबाने यह शपथ अस्वीकार की इस पर जमदग्नि क्रोधित होकर कहने लगा कि तू मुझ समान तपस्वी होना क्यों नहीं चाहता, तब चकवाने कहा कि महाराज ! शास्त्रोंका वचन है कि ' अपुत्रस्य गति नास्ति " अर्थात् जिसके पुत्र न हो उसकी गति नहीं होती और आपके समान तापसी होनेसे पुत्र नहीं हो सकता अतएव मैंने आप समान होने की इच्छा नहीं की तब जमदग्नि भी पुत्रके लोभसे विवाह करने को तैयार हुआ और अपने मामा पारताख्वके पास जाकर कन्या मांगी। मामाने कहा कि मेरी सौ पुत्रियोंमेंसे जो तुझे चाहे उसे मैं तेरे साथ विवाह कर दूंगा । जमदग्नि पुत्रियों के पास गया पर जो समझदार और बड़ी थीं उन्होने तो इसे नहीं चाहा । एक बालिका रेती में खेल रही थी उसे केलाका फल दिखाया और कहा कि तू मुझे चाहती है तब उसने स्वीकार किया । फिर उसीके साथ पारताख्यने विवाह कर दिया । जमदग्निने उसका नाम रेणुमती रखा । इस रेणुमतीके दो पुत्र हुए । परशुराम और श्वेतराम । ये