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दुसरा भाग ।
(९) सोलह वर्ष तक तप करने पर मिती कार्तिक सुदी बारस के दिन भगवान् के चार घातिया कर्मोंका नाश हुआ । और केवलज्ञान प्रगट हुआ । तब इन्द्रादि देवोंने ज्ञान कल्याणका उत्सव मनाया ।
(१०) भगवान् की सभा में इस भांति चतुर्विध संघ था ।
३० कुंभार्य्य आदि गणधर ६१० पूर्वाग ज्ञानके धारी
३५८३५ शिक्षक मुनि २८०० अवधिज्ञानी
२८०० केवलज्ञानी
४३०० विक्रिया रिद्धिधारी
२०५५ मन:पर्यय ज्ञानी
१६०० वादी
५००३०
६०००० यक्षिला आदि आर्यिकायें
१६०००० श्रावक
३००००० श्राविका
(११) आयुमें एक मास शेष रहने तक आपने समस्त ! आर्यखंडमें विहार किया । और जब आयु एक मासकी रह गई तब आप सम्मेदशिखर पधारे । दिव्यध्वनि होना बंद हुई । इस एक मासमें भगवान् शेष कर्मोंको नाश कर चैत्र वदी अमाबसको मोक्ष • पधारे । इन्द्रादि देवोंने आकर निर्वाण कल्याणकका उत्सव मनाया।