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प्रस्तावना।
प्राचीन जैन इतिहासका प्रथम भाग करीब ५ वर्ष पहिले प्रकाशित हुआ था, उसी समय दूसरा भाग भी प्रकाशित होनेकी सूचना दी गई थी । परन्तु कई कारणोंसे दूसरा भाग उस समय प्रकाशित नहीं होने पाया था, अब वह श्रीयुक्त मूलचंदनी किसनदासनी कापड़ियाकी कपासे प्रकाशित हो रहा है ।
। हमारा विचार था कि इस भागमें चौवीसों तीर्थकरोंका पूर्ण वर्णन दे दिया जाय । परंतु इस भागके बहुत बढ़नानेसे हम अपने विचारके अनुसार कार्य न कर सके । अब तीसरे भागमें जैन इतिहास पूर्ण हो जायगा । .. पहले भागकी दिगम्बर जैन समानने साधारणतया अच्छी कद्र की है आशा है कि इस भागको भी जैन समाज अपनाकर लेखक और प्रकाशकका उत्साह बढ़ावेगी। - इस भागमें हमारे प्रूफ न देखनेसे बहुत अशुद्धियाँ रह गई हैं, इसके लिये पाठकोंसे क्षमा-प्रार्थना करते हुए हम निवेदन करते हैं कि पाठकगण कृपाकर शुद्धि पत्रके अनुसार पहेले इस पुस्तकको शुद्ध कर लें और पीछे पाठ करें।
प्रार्थी-लेखक ।