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प्राचीन जैन इतिहास |
१३.
पाठ ८ ।
सनत्कुमार | ( चौथे चक्रवर्ति )
मघवा चक्रवर्तिके
(१) भगवान् धर्मनाथके ही तीर्थकालमें बाद सनत्कुमार चौथे चक्रवर्ति हुए थे । ये अयोध्या के राजा सूर्यवंशी अनंतवीर्य और रानी सहदेवीके पुत्र थे । ये बड़े भारी रूपवान थे । इनके रूपकी प्रशंसा स्वर्ग में इन्द्रादिदेव किया करते थे | साड़े इकतालीस धनुष ऊंचा शरीर था और आयु तीन लाख वर्षकी थी। चौदह रत्न, नव निधियां आदि सम्पति जो कि प्रत्येक चक्रवर्तिको प्राप्त होती है प्राप्त हुई थी । ( देखो परिशिष्ठ 'ख' ) छठ खण्डको इन्होंने विजय किया । बत्तीस हजार राजा इनके आधीन थे । छनवे हजार रानियां थीं
कि एक दिन इन्द्रसे
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आये और छिपकर संतोष हुआ । फिर
(२) इनका रूप इतना सुंदर था स्वर्ग में इनके रूपकी प्रशंसा सुन दो देव रूप देखने लगे । उस रूपसे देवोंको बड़ा प्रगट होकर चक्रवर्तिसे अपने आनेका हाल निवेदन किया । (२) एक दिन चक्रवर्तिको संसारकी अनित्यताका ध्यान हुआ तब अपने पुत्र देवकुमारको राज्य दे शिवगुप्त जिनके समीप बहुतसे राजाओं सहित दिक्षा धारण की।
(३) तप करते समय इनके शरीर में कुष्ट आदि अनेक भयंकर रोग उत्पन्न हुए जिनसे शरीर की सुंदरता नष्ट हो गई । तब परीक्षार्थ देवोंने वैद्यका रूप धारण किया और इनके समीप आये । देवोंमें और इनमें इस भांति बातचीत हुई