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प्राचीन जैन इतिहास। १५९ मारोचने मंदोदरीके पास जाकर रावणकी बात कही ! मंदोदरीने दुःखके साथ एक संदूकमें बहुतसा द्रव्य तथा लेख और पुत्रीको रखकर मारीचसे कहा कि इसे निरुपद्रव स्थानमें रखना । मारीच उसे लेकर मिथिला देशके निकट वनमें जमीनमें गाड़ आया । उसी दिन बहुतसे लोग वहां घर बनाने का स्थान देख रहे थे। सो हलकी नोकसे वह संदूक निकली। लोगोंने वह राजाके यहां पहुंचाई। रामाने उसे देखकर वसुधा रानीको दी। वसुधाने उसका पालन छिपे छिपे किया और उसका नाम सीता रखा गया । जनकने जो यज्ञ करने का विचार किया है, उस यज्ञमें रावण नहीं आवेगा क्योंकि उसे मालूम नहीं है। इससे जनक रामको सीता अर्पण करेंगे अतः दोनों कुमारों को वहां अवश्य भेजना उचित है । इस पर राम, लक्ष्मणको सेना सहित दशरथने भेजा। राम लक्ष्मणका जनकने बहुत स्वागत किया। राजाओंके समक्ष जनकके यज्ञकी विधि पूर्ण हो जाने पर जनकने रापके साथ सीताका विवाह कर दिया। कुछ दिनों तक राम, लक्ष्मण जनकके यहां ही रहे। फिर दशरथके बुलाने पर दोनों भाई अयोध्या आये । अयोध्या रामका मात और राजकन्याओंके साथ और लक्षमणका सोलह राजकन्याओंके साथ विवाह किया । फिर राम लक्ष्मणने बनारस नाकर राज्य करने की इच्छा प्रगट की । पहिले तो दशरथने इसका विरोध किया फिर इन दोनोंके आग्रहसे रामको राज्य मुकुट पहना कर और लक्ष्मणको युवरान पद देकर विदा किया । राम लक्ष्मण बन रस में सुख पूर्वक रहने लगे।