________________
१२०
दूसरा भाग ।
1
पहुँच कर दोनों सेनाओंकी खूब मुठमेड़ हुई। कभी रावणकी और कभी रामचन्द्रकी सेना दबने लगी । दोनों ओरके वीर घनघोर युद्ध करने लगे । जब रावणकी सेना दबती तब वह स्वयं उद्यत होता परन्तु कभी कुम्भकरण और कभी इन्द्रनीत उसे रोक देते और स्वयं लड़ते । कभी रावणके पक्ष के योद्धा राम पक्ष के योद्धाओंको बाँध लेते, कभी राम पक्षके अपने योद्धाओं को छुड़ा कर रावणके योद्धाओंको बाँध लेते । दिन भर युद्ध होता और सूर्यास्त होते ही युद्ध बन्द हो जाया करता था । उस समयकी यही पद्धति थी । इस युद्ध में किसी २ योद्धा के रथ में सिंह भी जोते गये थे ।
(३७) देशभूषण, कुलभूषण के समवशरण में जिम गरुड़ेन्द्रने समय पड़ने पर सहायताका बचन दिया था, रामने उस गरुड़न्द्रका स्मरण किया । उसने अपने एक अधीनस्थ देवके द्वारा, जलबाण, अग्निबाण, और पवनबाण भेन विद्यत्चक्र नामक गढ़ा लक्ष्मणके लिये और हल - मूमल रामके लिये भेजे ।
(३८) रावणकी सेना के योद्धाओंके नाम इस प्रकार हैंमारीचसिंह, जघन्य, स्वम्भू, शम्भू, वज्राक्ष, वज्रभूति, नक्रमकर, वज्रघोष, उग्रनाद, सुन्दानकुम्भ, कुम्भ, सन्ध्याक्ष, विभ्रमक्रूर, माल्यवान्, जम्बू, शिखीवीर, ऊर्द्धक, वज्जोदर, शक्रप्रभ, कृतांत, विगोधर, महामणी, असणीघोष, चन्द्र, चन्द्रनख, मृत्युभीषण, धूम्राक्ष, मुदित, विद्युतश्री, महामारीच, कनकक्रोधनु, क्षोभणद्रन्ध, उद्दाम, डिण्डी, डिण्डम, डिण्डव, प्रचण्ड, डमर, चण्ड, कुण्ड,