SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन है। व्यवहारभाष्य में चक्रवर्ती राजाओं, वासुदेवों, माण्डलिकों और सामान्य जन के महलों का उल्लेख हुआ है। राजभवन का ही एक हिस्सा अन्तःपुर कहलाता था जिसके संबंध में प्रस्तुत ग्रन्थ में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अन्तःपुर में प्रधान महिषी के अतिरिक्त अन्य रानियाँ होती थीं और राजा सुन्दर नारियों द्वारा उनकी संख्या में वृद्धि की बराबर चेष्टा करता था। कभीकभी तो वह समूह के नारियों को ले आता था। बृहत्कल्पभाष्य में इसी तरह की घटना का उल्लेख हुआ है। एक बार इन्द्रमह का उत्सव मनाया जा रहा था। पाँच सौ कन्याएँ इन्द्रदेव की पूजा के लिए गई हुई थीं। उत्सव को देखने के लिए वहाँ का हेम नामक राजकुमार भी गया हुआ था। इन कन्याओं को देखकर राजकुमार मोहित हो गया और वह उन्हें अपने अन्तःपुर में उठवा ले गया। इन कन्याओं के माता-पिता ने राजा से शिकायत की तो राजा ने पूछा कि क्या तुम लोग मेरे पुत्र को अपना दामाद नहीं बनाना चाहते।' इस पर वे राजी हो गये और सभी कन्याओं का राजकुमार से विवाह कर दिया गया। __अन्तःपुर की रक्षा के लिए राजा सतत् प्रयत्नशील रहता था ताकि उसकी पवित्रता में किसी भी प्रकार का धब्बा न लगे। इसीलिए अन्तःपुर की रक्षा के लिए नपुंसक और वृद्धजनों को नियुक्त किया जाता था।१० बृहत्कल्पभाष्य में नपुंसक को पंडक कहा गया है और उनके छह लक्षण बताये गये हैंमहिलास्वभाव, स्वरभेद, वर्णभेद, महन्भेद (प्रलम्ब अंगादान), मृदुवाक् और सशब्द एवं अफेनक मूत्र।११ उक्त ग्रन्थ में उनके कई भेद-प्रभेद भी बतलाये गये हैं। लेकिन श्रमण-दीक्षा के लिए उन्हें अयोग्य माना गया है।१२ ___अन्तःपुर का एक अन्य रक्षक वरिसधर होता था जिसे बचपन में ही बधिया कर दिया जाता था।१३ निशीथचूर्णि में वरिसधर के अतिरिक्त चार और रक्षक होते थे जिन्हें दंडारक्खिय, दोवोरिय, कंचुकिन और महत्तरग कहा जाता था।१४ मजबूत सुरक्षा के बावजूद कुछ अनहोनी हो ही जाती थी। बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि अन्तःपुर की कन्याएँ खिड़कियों के पास बैठकर विटपों यानी लंपटों से बातचीत किया करती थीं और एक दिन वे उनके साथ भाग गईं।१५ इसीलिए अन्तःपुर में बन्दरों का प्रवेश निषिद्ध था।१६ यह इस बात का सूचक है कि राजा अन्तःपुर की सुरक्षा के लिए कितनी सावधानी बरतता था।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy